कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
बहुत अधूरा सा
कभी
पूरा नहीं होता।
कुछ टूटा सा
गहरे टूट जाता है।
कूछ
टूटने में
जुड़ाव की
गुंजाइश
हमेशा रहती है।
टूटने
और
जुड़ने में
समय
बहुत प्रमुख
हो जाया करता है।
जी बहुत आभार...
बेहतरीन रचना ❗🙏❗
बहुत आभार आपका...।
सही कहा आपने ।
सुंदर अभिव्यक्ति
जी बहुत आभार...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ❗🙏❗
ReplyDeleteबहुत आभार आपका...।
Deleteसही कहा आपने ।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
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