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पुरवाई

Tuesday, March 30, 2021

ये घर बतियाता है तुम जानती हो


कोई

घर महकता है

तुम्हें पाकर।

कोई 

चौखट घंटों बतियाती है

तुमसे।

कोई दालान

तुम्हारे साथ जीना चाहता है।

कोई

दरवाजा तुम्हें महसूस कर

खिलखिला उठता है

अकेले में।

कोई धूप

कहीं किसी दरवाजे की ओट से

देखने आ जाती है

तुम्हें।

ये घर 

तुम्हारी  मौजूदगी का हस्ताक्षर है

तुम

जैसे चाहो इसे 

शब्दों में कह सकती हो।

तुम चाहो तो

इसे 

मन कह दो

चाहो तो

आत्मा

या फिर

हमारे अहसास।

घर 

तुमसे है

और 

तुम्हीं घर की श्वास हो।

घर 

तुम्हें न पाकर 

उतावला सा

आ बैठता है

मुख्य दरवाजे की चौखट पर

दूर तक देखता है

एक सदी निहारता है

और 

तुम्हें पाकर 

समा जाता है

अहसासों की चारदीवारी में।

घर

बतियाता है

हां 

ये घर बतियाता है

तुम जानती हो

10 comments:

  1. कितने खूबसूरत एहसास ...
    ये घर

    तुम्हारी मौजूदगी का हस्ताक्षर है

    तुम

    जैसे चाहो इसे

    शब्दों में कह सकती हो।
    मल्लिका का एहसास हो रहा होगा न ?

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    1. संगीता जी बहुत आभार...। मन के अहसास विचारों का साथ पाकर हमेशा मुस्कुरा उठते हैं...।

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  2. ऐसे खूबसूरत भाव अगर हर घर की ड्योढ़ी से होकर भी गुजर जाय,तो शायद हमारे समाज की स्त्री का जीवन फूलों की बगिया सा महक उठे,आपके सुंदर मनोभाव और उस भाव के खुले समर्थन को मेरा हार्दिक नमन ।

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    1. आपको मेरी रचना और भाव अच्छे लगे...आभारी हूँ...। नेह की बगिया हर घर के दालान में होनी चाहिए...।

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  3. बहुत बढिया। किसी के प्रति अथाह अनुराग का साक्ष्य बनकर कोई चौखट बतियाये तो घर में अंदर से बाहर आनंद ही आनंद है। भावपूर्ण रचना प्रेमिल भाव 👌👌👌👌🙏

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  4. यही आनंद में हर चौखट अंकुरित करना चाहता हूं...। आभार रेणु जी...

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  5. ऎसी रचनाएँ रोमांचित कर जाती हैं... एक अलग प्रकार का रोमांच होता है.

    निज जीवन से जुड़े बिम्ब बहुत भाते हैं....

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  6. बहुत आभार आपका संजय जी...।

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  7. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना

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