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पुरवाई

Wednesday, April 28, 2021

बिटिया हम लज्जित हैं...।

 


मेरी बेटी पूछ रही है

ये सब 

कब तक 

पापा...?

मैं 

निशब्द सा उसे देखता रहा

और 

वो मुझे।

बस 

अगले ही पल

मेरी आंख से

आंसू

ढल गया

उसने कहा

ना पापा

ये रोने का नहीं

खामोशी तोड़ने का समय है।

वह बोली

बदलना चाहिए सबकुछ

हमारी पीढ़ी

की

गलती क्या है पापा ?

न हवा है

न पानी

न ही पढ़ाई

वह बोली

पता है पापा 

आंखें

दर्द करने लगी हैं

मोबाइल पर 

पढ़कर।

मैं आपसे कहती नहीं

क्योंकि आप

इस हालात से

पहले ही परेशान हो...।

वह बोली 

सब लिखते क्यों नही

शिकायत क्यों नहीं करते

क्या कोई नहीं सुनेगा?

मैं बोला

सुनी जाती

तो 

ये चीखें

क्यों 

नहीं सुनी जा रहीं।

मेरी बच्ची

तुम्हें और तुम्हारी पीढ़ी को

गढ़ना होगा

एक 

नया आकाश

नया

समाज

और

नया नेतृत्व...।

हम तो 

ऐसा कुछ अच्छा दे न सके

तुम्हें...। 

माफ करना बिटिया

हम लज्जित हैं...।


6 comments:

  1. आज के माहौल पर बहुत ही गंभीर प्रश्न करती बेटी,और उत्तर देने में निःसहाय पिता की दास्तां आपने अपनी इस कविता में हुबहू पेश कर दिया संदीप जी,सादर शुभकामनाएं।

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  2. बहुत आभारी हूं जिज्ञासा जी। ये समय है जो लिखवाता जा रहा है

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  3. बहुत ही गहरी और सोच में डालती हुई ये रचना पढ़कर आंखें नम हो गयी !
    हालातों को देख यही सवाल उठता है ? आप सभी स्वस्थ और सुरक्षित रहे !
    आभार!

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    1. बहुत आभार आपका...मन से केवल शब्द और आंसु वाले भाव ही इन दिनों प्रमुखता से निकल रहे हैं।

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  4. वाकई , बच्चों हम लज्जित हैं । इतना सब होने पर भी इंसान है कि समझना ही नहीं चाहता

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  5. आभार संगीता जी।

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