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पुरवाई

Sunday, April 4, 2021

पत्तों की उम्र में सयानेपन की धमक


 


फूलों की देह

पर 

जंगली 

सुगंध के निशान

उभरे हुए हैं।

प्रेम का जंगल 

हो जाना

सभ्यता 

को 

ललकारना नहीं है।

जंगल 

के बीच कहीं कोई

प्रेम

अंकुरित हो रहा है

पथरीली

जमीन

पर 

पांव

के 

निशान हैं।

ये 

निश्चित ही प्रेम है।

फूलों

के चेहरों पर

उम्र 

की शोखी

है 

और

पत्तों की उम्र

में सयानेपन 

धमक।

प्रेम

फूलों के 

कानों में

होले से 

सुना जाती है

कोई

जंगली

गीत

और प्रेम

वृक्ष हो जाता है

जो 

अनुभूति 

का स्पर्श 

सदियों पाता है।

प्रेम 

ऐसा ही होता है

जंगली खुशबू लिए...।

8 comments:

  1. Replies
    1. जी बहुत आभार आदरणीय...।

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  2. प्रेम को जंगली बनाना आसान है,परंतु जंगल से प्रेम की अनुभूति बहुत कठिन है,आपका प्रकृति प्रेम हर परिदृश्य में परिलक्षित हो रहा है,सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. आभार आपका जिज्ञासा जी। प्रेम जंगल हो जाता है लेकिन जंगल जीवन का चेहरा है और जीवन का चेहरा हम किस तरह देखते हैं यह हमें तय करना होता है, हम जंगल को क्रूर मान बैठे हैं लेकिन जंगल में भी असंख्य प्रेम अंकुरित होता है और आकार लेता है। हर जीव, पौधे, पत्तियों सभी प्रेम में जीते हैं। आपका आभार बहुत गहरे विचार अपनी कविताओं पर आपसे पाकर मन हर्षित हो उठता है। हमें तय करना होगा कि जंगल कौन सा बेहतर है...वो जहां वन्य जीव रहते हैं, प्रकृति रहती है या वह जहां हम रहते हैं....।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 05 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आभार दिव्या जी...।

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  5. प्रेम का जंगल हो जाना...
    जंगल तो है ही प्रेम का साक्षात स्वरूप जहाँ वृक्ष, लताएँ, फूल, कलियाँ, तितली, भौंरे, तरह तरह के पशु पक्षी, वनदेवी वनदेवताओं के सानिध्य में बढ़ते हैं/ स्वच्छंद विचरण करते हैं, प्रेम का निरामय रूप है जंगल और जंगल की शांति !!!

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  6. जंगल में कहीं कोई प्रेम अंकुरित हो रहा है कितना सौंदर्य है इस बात में । बहुत खूब

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