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पुरवाई

Wednesday, April 7, 2021

जब हम पनीली आंखों में मुस्कुराए


जिंदगी

का वह हरेक दिन

जब हम साथ बैठ

खिलखिलाए

गुलाब थे।

वह हरेक दिन

जब हम 

उलझनों पर 

दर्ज करते थे जीत

गुलाब थे।

वह हरेक दिन

जब

तुम और 

मैं 

हम हो गए

गुलाब थे।

वह हरेक दिन

जब हम पनीली आंखों में

मुस्कुराए

गुलाब थे।

वह हरेक दिन 

जब खुशियों में भीग गए

हमारे मन

गुलाब थे।

वह हरेक दिन

जब जब 

कठिन दिनों में

तुमने रखा कांधे पर हाथ

गुलाब थे...।

6 comments:

  1. अहा ,
    ख़ुशी में गुलाब , संघर्ष में गुलाब , एक साथ होने में गुलाब .... बस रचना पढ़ कर गुलाब महक गए ... बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति .

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    1. संगीता जी...बहुत आभार

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  2. जी बहुत आभार आपका।

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  3. सुख, दुख से जुड़े हर अहसास को आपने बड़ी आसानी से गुलाब जैसे ग्रहण कर लिया,ईश्वर ये सहजता बनाए रखे। सुंदर रचना ।

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  4. बहुत आभार जिज्ञासा जी...

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