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पुरवाई

Wednesday, May 19, 2021

उन उम्रदराज शरीरों का मुस्कुराना


 मैंने 

सुबह मुस्कुराते हुए देखा

बुजुर्ग दंपत्ति को

ठीक वैसे ही

जैसे

छत की मुंडेर पर बैठ

कोई लंबी दूरी तय कर आया

थका सा पक्षी 

राहत पाता है।

छत पर गर्मी के बाद

ठंडी हवा 

उम्र के चढ़ने के साथ

उठने वाले 

कई दर्दों को राहत दे जाती है।

वृद्ध हो चुके उड़ते 

सफेद बालों को देख

एक मुस्कान दोबारा पसर जाती है

उम्र की

उम्रदराज होते शरीरों की

खुशियों की। 

चीखते और तपते दिनों 

का दर्द

आज 

नहीं है

आज  सूख चुकी उम्र को

मिली है वायु 

और 

जो 

अभी अभी कहीं बारिश में

सावन में

नहाकर आई थी।

वायु में 

फुहारें थीं

उम्मीद थी

जीवन था

भरोसा था

और

अपनापन।

थका हुआ शरीर

थके हुए समय का प्रतीक नही होता

अनुभवों का एक पिरामिड अवश्य हो जाता है।

उम्र के इस दौर में

सच 

और 

सच 

बहुत साफ नजर आता है

उन धुंधली नजरों से।

उम्र के इस दौर में

सच 

साफ शब्दों में बोला जाता है

जुबान के लड़खड़ाने के बावजूद।

उम्र के इस दौर में 

सच 

सहेजा जाता है 

थके और कमजोर से शरीर के 

मजबूत हो चुके विचारों में।

उम्र के इस दौर में 

सुबह अच्छी लगती है 

क्योंकि

उम्र की सांझ 

अंतर मिटा देती है

सुबह और दोपहर के बीच के तपिश भरे छोरों का।

छत

दोबारा आबाद है

क्योंकि 

बुजुर्ग उस मुंडेर पर 

उस पक्षी को देख

उसकी थकन 

अपने अंदर महसूस कर रहे हैं

और

बहुत भरोसे के साथ

दो हाथ

कांपते हाथ

एक दूसरे पर 

रख दिए जाते हैं

दरारों की भुरभुरी चुभन की परवाह किए बिना।

22 comments:

  1. आभार आपका शिवम जी।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. सुप्रभात रवींद्र जी...। आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए...।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ मई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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    1. सुप्रभात श्वेता जी...। आभार आपका मेरी रचना को शामिल करने के लिए...।

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  4. फिर से एक बेहतरीन रचना विषय 'उम्रदराज' पर। बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना है।
    अब मुझमें यह जानने कि इच्छा जा गयी है कि इन रचनाओं के लिखने की आपको प्रेरणा कैसे मिली? क्योंकि ये रचनाएं बहुत अनुभवी है। आपने इतने करीब से कैसे जाना? (मुझे जहाँ तक लग रहा है कि आपकी उम्र अभी तक इन दायरों नहीं आयी हुई है)
    पूछने के लिए सवाल बहुत हैं....पर उतना पूछना मुमकिन नहीं है यहाँ।
    अभिनन्दन ऐसी रचना लिखने के लिए।

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    1. आभार आपका प्रकाश जी...। उम्रदराज होना शरीर का एक मौसम है, उम्रदराजों पर लिखने के लिए उम्रदराज होने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें महसूस कीजिए, उनके हाथों की शिराओं को, उनके चेहरे की झुर्रियों को, उनके शरीर के कंपन को, उनकी नेह और भरोसे की मजबूती को...। बहुत सा है जिसे हम लिख सकते हैं, इस उम्र से सामाजिक दूरियां भी गहराती जा रही हैं ये सच जानते हुए भी कि एक दिन सभी को ये झुर्रीदार जामा पहनाना है...। नेह भरी इस प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार आपका।

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    2. 🙏🙏🙏 जी अवश्य। आपका जवाब अंतर्मन को प्रोत्साहित किया।

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  5. थका हुआ शरीर ..अनुभवों का पिरामिड ..बहुत ही गहरी अनुभूति से निकली जीवन्त रचना . ..प्रकाश वाह जी ई बात का जबाब यह है कि एक संवेदनशील रचनाकार किसी भी काया में प्रवेश कर उसके मन का कोना कोना झांक सकता है . साधारण व्यक्ति और एक रचनाकार में यही तो अन्तर होता है .

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    1. आभार गिरिजा जी...। इस उम्र पर लेखन बेहद जरुरी है, ये उम्र कोई दरकार नहीं रखती लेकिन यदि वे कहेंगे नहीं तो हम सोचेंगे भी नहीं...ऐसा तो नहीं होना चाहिए...। आभार आपका।

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  6. बेहतरीन रचना

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    1. आभार आपका प्रीति जी...।

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  7. बहुत सुन्दर

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    1. जी ओंकार जी ...आभार आपका।

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  8. संदीप जी
    आपकी कविता पढ़ते हुए लगा कि जैसे हमारे सामने आईना रख दिया है और मैं अपने को पढ़ रही हूँ । उम्रदराज के रूप में आपने कितनी उम्र (संख्या ) के लोगों की बात भले ही सोची हो लेकिन हर पंक्ति में मैंने खुद को देखा है ।
    और इस लिए एक एक शब्द इसका मेरे मन के करीब महसूस हुआ । आभार ।
    ये पंक्तियाँ अप्रतिम

    दो हाथ

    कांपते हाथ

    एक दूसरे पर

    रख दिए जाते हैं

    दरारों की भुरभुरी चुभन की परवाह किए बिना।

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    Replies
    1. संगीता जी आभारी हूं आपका। आपको मेरी रचना पसंद आई और आपको गहरे तक छू गई। उम्रदराज सभी को होना है, उम्रदराज होकर केवल उम्रदराज ही सोचें ये बात ठीक नहीं है, अच्छाई तो तब है जब छोटी उम्र उस उम्र के दर्द को जीने लगे, महसूस करने लगे। आभारी हूं आपका।

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  9. इस भरोसे की सबसे ज़्यादा ज़रूरत इसी उम्र में होती है। बहुत अच्छी रचना है यह आपकी।

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  10. बहुत आभार आपका आदरणीय जितेंद्र जी। भरोसा भी लिखा जाना चाहिए ये उम्र उसकी बहुत राह देखती है।

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  11. "साफ शब्दों में बोला जाता है
    जुबान के लड़खड़ाने के बावजूद।"... और ..
    "उम्र के इस दौर में
    सच
    सहेजा जाता है
    थके और कमजोर से शरीर के
    मजबूत हो चुके विचारों में।" ... यूँ तो हर पंक्ति/विचार किसी भी वृद्ध हो रहे या हो चुके इंसान को अपने आइने में उसका प्रतिबिंब झलका रहा है ...

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    1. जी बहुत आभार आपका सुबोध जी...।

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  12. उम्र दराज
    वाकई इस उम्र के व्यक्तियों के चेहरे पर
    मुस्कान जरूरी है
    बहुत सुंदर कविता
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें

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