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पुरवाई

Tuesday, July 6, 2021

मां


 

मां

की आंखें उम्र के पहले

धंस जाती हैं 

चिंता के भंवर में।

वह

तराशती है

घर

बच्चे

सपने

पति

आंगन

उम्मीद

संस्कार।

बदले में

हंसते हुए न्यौछावर कर देती है

अपनी उम्र

अपनी मंजिल

अपनी ख्वाहिशें।

हर बार 

केवल मुस्कुराती है

छिपाए हुए पैसे भी

कहां छिपा पाती है। 

घर सजाती है

खुद संवरने के दौर में भी।

बच्चों के चेहरों को

कई बार

निहारती है

दर्द पढ़ती है

उसे खुद जीती है

खुद सीती है।

परिवार को साथ पाकर

खिलखिला उठती है अक्सर

अकेले में

क्योंकि 

तब वह जीत को महसूस करती है। 

डर जाती है

घर की एक भी दरार को देखकर

अंदर तक कांप जाता है उसका मन

घर को उदास पाकर।

उम्र के पहले

उसे पसंद है

ढल जाना

उसे स्वीकार्य है

सांझ का सच

लेकिन

उसे स्वीकार्य नहीं है घर की चीखें

घर का एकांकीपन

बच्चों के चेहरे पर उदासी

पति के चेहरे पर थकन

घर के आंगन में सूखा...।

ओह, सोचता हूं

अपने और अपनों में

कितनी विभाजित हो जाती है

अक्सर मां

जो

कभी शिकायत नहीं करती 

अपनी थकन की

जिसकी आंखें

स्याह घेरे के बीच से भी

मुस्कुराती हैं

क्योंकि मां 

चेहरे को पढ़़ना

बिना कुछ कहे समझना

और

दर्द को जीना जानती है

तभी तो

वह रच पाती है

एक घर

एक परिवार

और

बहुत सारे संस्कार।

सोचता हूं

कितनी सहजता से कर लिया करती है

मां

उधडे़ रिश्तों की तुरपाई।

मुस्कुराती है

जब बहुत थक जाती है

उम्मीद करती है

उससे कोई पूछ ले

दर्द कितना है

अगले ही पल

उठ जाती है

ये सोचकर 

बच्चे उसे हारता देखकर

कहीं हार न जाएं 

जीवन

और

दोबारा

पीसने लगती है

उम्र की चक्की में

घर की खुशियों का अनाज।





17 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०७-०७-२०२१) को
    'तुम आयीं' (चर्चा अंक- ४११८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभारी हूं आपका अनीता जी। मेरी रचना को मान देने के लिए।

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  2. मां को समर्पित सुंदर भावो से सजी रचना,बहुत शुभकामनाएं संदीप जी।

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    1. बहुत आभारी हूं आपका जिज्ञासा जी। मां पर लिखना प्रकृति पर लिखना एक जैसा ही अनुभव देता है....।

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  3. गहन भाव ,सुंदर रचना !!

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    1. बहुत आभारी हूं आपका अनुपमा जी।

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  4. दर्द पढ़ती है

    उसे खुद जीती है

    खुद सीती है।

    माँ हूँ समझ सकती हूँ अब अपनी माँ के पीड़ा को। लेकिन एक बेटे के रूप में आपने माँ का सम्पूर्ण चित्रण बाखूबी किया है,भावपूर्ण सृजन,सादर

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  5. जी बहुत बहुत आभारी हूं आपका कामिनी जी इस उत्साहवर्धन करने वाली प्रतिक्रिया के लिए।

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  6. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय विश्वमोहन जी।

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  7. कितनी गहराई में जाकर माँ के भावों को भावना में गूंथकर आपने लिखा है ।
    बहुत बहुत सुंदर।
    मन्नत की मौली होती है माँ कहीं किसी शाख पर टंगी बदरंगी हो जाती है पर आस्था से लिपटी रहती है उसी शाख पर ।
    सादर।

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  8. ओह, सोचता हूं
    अपने और अपनों में
    कितनी विभाजित हो जाती है
    अक्सर मां..
    माँ के मन के भावों को बहुत गहराई से अनुभव कर भावसिक्त शब्दों की माला तैयार की है आपने संदीप जी । अति सुन्दर सृजन ।

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  9. अत्यंत मर्मस्पर्शी। एक एक पंक्ति में अपनी माँ को, खुद को और अपने आसपास की अनेक माँओं को देख रही हूँ। माँ ऐसी ही होती है।

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  10. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  11. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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  12. मेरी माँ या फिर हर माँ की कहानी है जो हमारी पीढ़ी की माँ है | मार्मिक भावों से संवरी रचना संदीप जी |माँ को भरा पूरा खिलखिलाता आंगन ही भाता है | एकाकीपन से डरती है माँ इसीलिये माँ के रहते घर स्पंदन अपने सकारात्मक रूप में रहता है |

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