पेज

पुरवाई

Thursday, August 12, 2021

भोर होने वाली है

दिन स्याह हैं

कड़वे हैं

कंठ भिंच रहे हैं

रात की कालिख

पूरे दिन पर सवाल

उकेर रही है

दूर

बहुत दूर

कोई खूबसूरत सुबह

रात की निराशा को

चीरकर

बढ़ रही हमारी ओर

देखो इंतजार करो

भोर होने वाली है






28 comments:

  1. निराशा से आशा की और बढ़ते कदम ,सुंदर प्रस्तुति |

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार आपका अनुपमा जी।

      Delete
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका श्वेता जी। मेरी रचना को शामिल करने के लिए साधुवाद।

      Delete
  3. जी बहुत आभार आपका मीना जी। मेरी रचना को शामिल करने के लिए साधुवाद।

    ReplyDelete
  4. आशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना, संदीप भाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका ज्योति जी।

      Delete
  5. बेहद प्यारी रचना
    साधुवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका विभा जी।

      Delete
  6. तभी कहते न कि उम्मीद पर दुनिया कायम ।
    कभी तो अव्यवस्था रूपी अंधेरा छंटेगा । लेकिन हम अँधेरों में भटकने के आदी हैं , रोशनी बर्दाश्त भी नहीं होती ।
    सुंदर अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी।

      Delete
  7. बहुत सुंदर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका

      Delete
  8. दूर

    बहुत दूर

    कोई खूबसूरत सुबह

    रात की निराशा को

    चीरकर

    बढ़ रही हमारी ओर

    देखो इंतजार करो

    भोर होने वाली है
    बस इसी भोर का इंतजार है कब ये स्याह रात छँटेगी...
    आशा का संचार करती बहुत सुन्दर कृति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका सुधा जी...।

      Delete
  9. बहुत सुंदर, सकारात्मकता का संचार करती सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका जिज्ञासा जी।

      Delete
  10. बहुत बहुत सुंदर!!
    आशा का सूरज जरूर उदय होता है।
    सुखद अहसास।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete
  11. बस इसी इसी में सभी हैं कि भोर होने वाली है

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका प्रीति जी...लेकिन उम्मीद की भोर हमेशा रहती है...।

      Delete
  12. इंतज़ार वही बेहतर होता है शर्मा जी जो कभी-न-कभी ख़त्म ज़रूर हो क्योंकि इंतज़ार का मज़ा शायरी में तो आ सकता है, ज़िन्दगी में नहीं। लम्बा इंतज़ार बड़ा बोझिल हो जाता है लेकिन उसका सिला मिल जाए तो शिकवा भी नहीं रहता। आपकी कविता बहुत अच्छी है क्योंकि नाउम्मीदी के अंधेरे में उम्मीद की शफ़क़ जगाती है। इस कविता की आख़िरी सतरों ने मुझे सुशील सिद्धार्थ जी की एक बरसों पुरानी ग़ज़ल का एक शेर याद दिला दिया:

    तुम क्या जानो क्यों हम उगते सूरज के दीवाने हैं
    एक सुबह की ख़ातिर हमने सारी उम्र गुज़ारी है

    ReplyDelete
    Replies
    1. मन प्रसन्न हो गया जितेंद्र जी...शेर जैसे मुझ पर सटीक है...। जीवन में शब्द आपके सच्चे दोस्त होते है...। आभार आपका...।

      Delete
  13. सुंदर आशा जगाती पंक्तियाँ.. रात जब सबसे स्याह हो तब सोचो भोर होने वाली है तो वह स्याह रात गुजारना आसान हो जाता है....

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार आपका विकास जी...।

      Delete
  14. बहुत सुन्दर मधुर रचना

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर।
    आपकी सारी रचनाएँ मेरी अंतरात्मा में उतर जाती है। आज मुझे आपकी रचनाएँ पढने का मन हुआ तो आपका ब्लॉग ढूंढकर पढा। मैं ब्लॉग पर कई महिनों बाद आया हूँ। आप बेहतरीन हैं।

    ReplyDelete