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पुरवाई

Saturday, September 25, 2021

कट जाएगी जीवन की उम्मीद


 

थक गया हूं

बहुत

इस दुनिया में

अब 

नहीं चाहिए

हमें भी

ये दुनिया

जो

निर्दयता से काट दे

पैर

और

सीने पर चला दे कुल्हाड़ी

कभी भी 

किसी भी बेतुके कारण से।

और सुनना भी न चाहे

मेरी चीख

कि

कैसे जीओगे मेरे बिना।

कटे शरीर के कई हिस्से

यूं ही बिखरे हैं

यहां 

वहां

चाहो तो

पैरों तले रौंदकर

निकल जाना। 

चाहो तो

अपनी आरामगाह में सजाना

लेकिन 

मैं लौटना नहीं चाहता 

इस बेसब्र दुनिया में

जहां

श्वास देने के बदले

मिलती है 

यूं मौत।

मैं 

देख रहा हूं

मेरे 

कटे शरीर पर 

लोग पैर रखकर

बतिया रहे हैं

कि

पर्यावरण बहुत बिगड गया है, गर्मी भी बहुत है।

मैं सुन पा रहा हूं

प्रकृति और धरा की चीख

मेरे कटे शरीर को देखकर

उसमें मां का दारुण दर्द है। 

मैं

देख रहा हूं

उन मासूम जीवों को 

जो

जीते थे मेरी छाल की

कंद्राओं में।

मैं

देख रहा हूं धूप में

नई छांव खोजते

परिंदों को

जो सुस्ताते थे पूरी आजादी से

मेरे पत्तों की छांव में।

सच 

यूं ही कटते रहे हमारे शरीर

तो यकीन मानना

एक दिन

कट जाएगा

पूरा जंगल

और कट जाएगी

जीवन की उम्मीद।

तब बचेगा केवल

एक तपता बिना वृक्ष वाला

ठूंठ हो चुका जंगल

जहां आबादी नहीं होगी

होगा

काल का सन्नाटा। 

10 comments:

  1. वृक्षों का संरक्षण आज के समय की बड़ी आवश्यकता है,संवाद शैली से सज्जित हृदयस्पर्शी रचना ।

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    1. जी बहुत आभारी हूं आपका।

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  2. प्रेरणा दायक रचना...

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    1. जी बहुत आभारी हूं आपका।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-9-21) को "आसमाँ चूम लेंगे हम"(चर्चा अंक 4201) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    1. जी बहुत आभारी हूं आपका।

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  4. बहुत ही प्रेरणादायक और उम्दा रचना

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    Replies
    1. जी बहुत आभारी हूं आपका।

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  5. मैं सुन पा रहा हूं

    प्रकृति और धरा की चीख

    मेरे कटे शरीर को देखकर

    उसमें मां का दारुण दर्द है।

    कटते वन उजड़ता जीवन
    उखड़ती साँस बची ना आस
    वन बिना जीवन असंभव को चेताती लाजवाब भावाभिव्यक्ति
    वाह!!!

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  6. मार्मिक सृजन।
    सादर

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