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पुरवाई

Tuesday, June 28, 2022

ये तस्वीरें सहेज लेना


मन आहत है
हमारी दुनिया को 
बेपानी होता देख। 
मन आहत है
हम पानी के अरसा पहले 
सूख गए।
मन आहत है
कि धरती पर 
संकट दीवारों पर चस्पा हो रहा है। 
मन आहत है
हम तपती धरती पर 
तल्लीन हैं 
ओघड़ मस्ती में।
मन आहत है
बारी- बारी सूख रहे हैं परिंदे। 
समझना होगा 
सहेज लीजिए इन तस्वीरों को 
कल 
यही अहसास की सीलन
लिए 
सहारा होंगी। 
मैं सूखते समाज में
आहत परिंदों पर 
मातम नहीं चाहता 
पानी चाहता हूँ
उनके लिए
क्योंकि यकीन मानिए
मानव के अंत की शुरुआत
पक्षियों के अंत से होती है।
(फोटोग्राफ दिल्ली में मेट्रो के नीचे वाल पर बने आर्ट का है... आर्ट जिसने भी बनाया मैं उन्हें नमन करता हूँ... उन्होंने खरा सच दिखाया...चाहते तो नल से बूंदें भी गिरती दिखा सकते थे... लेकिन हकीकत यही है कि कल कोई पानी नहीं होगा...)




 

8 comments:

  1. सहेज लीजिए इन तस्वीरों को
    कल
    यही अहसास की सीलन
    लिए
    सहारा होंगी।

    मार्मिक सत्य को कहती गहन रचना ।

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    1. बहुत आभार आपका संगीता जी।

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  2. बेपानी हो रही है धरा और बेपानी हो रहे हैं मन भी, छूट रहे हैं सारे लिहाज सँवारने के, समेटने के

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  3. "...
    मैं सूखते समाज में
    आहत परिंदों पर
    मातम नहीं चाहता
    पानी चाहता हूँ
    उनके लिए
    ..."

    बिल्कुल सही। हमे मातम नहीं समाधान चाहिए।
    सराहनीय रचना।

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  4. हकीकत बयां करती सराहनीय रचना ।

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