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पुरवाई

Saturday, November 12, 2022

फूल ही तो हैं


ये जो पत्तों का बिछौना है
दरअसल
हरेक फूल को 
नसीब नहीं होता। 
सूखकर गिरना 
और 
जमीन में 
खाद हो जाना 
एक सच है
लेकिन 
रोज असंख्य फूल टूटते हैं
गिरते हैं
कहां सुनाई देती है
हमें कुछ टूटने की आवाज़
कहां सुनाई देता है हमें
घटता मौन...। 
फूल ही तो हैं
टूटकर बिखर ही जाएंगे
हां 
दर्द हमें 
तब सुनाई देता है 
जब हम टूटते हैं 
या हममे से कोई एक टूटता है। 
इस धरा पर 
न जाने कितना कुछ दरक जाता है
हमारे कारण। 
हां फूल ही तो हैं
उनका दर्द कहां सुनाई देता है। 

4 comments:

  1. इस धरा पर
    न जाने कितना कुछ दरक जाता है
    हमारे कारण।
    कटु सत्य है। हम निर्माण और विकास की गलतफहमी के नशे में मग्न हैं, परन्तु कर रहे हैं विनाश।

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