बोझिल सी सांझ
के बाद
कोई सुबह आती है
जो दोपहर की तपिश साथ लाती है
और
उसमें घुल जाया करता है
पूरा जीवन।
उसके बाद
थके शरीर पर
होले होले शीतल वायु
लगाती रहती है मरहम।
फिर
कोई सांझ बोझिल नहीं होती।
सुबह, दोपहर और सांझ
यही तो
जीवन है
और
हरेक का अपना ओरा।
सुबह गहरे इंतजार के बाद होती है
कई स्याह रातों के कटने के बाद।
दोपहर जल्द नहीं कटती
थकाकर पूरी उम्र को चकनाचूर कर देती है।
और
सांझ उस दौर का नाम है
जब आप थके शरीर को
कमजोर पैरों पर
अनिच्छा भरे माहौल में
रोज कुछ कदम
चलाते हो, थकाते हो
और
सो जाते हो...।
बहुत सुंदर जीवन दर्शन सर।
जवाब देंहटाएंजीवन सुबह ,दोपहर, शाम इक पड़ाव है
बूँद-बूँद पिघल जल रहा,साँस इक अलाव है
किसी अनदेखे पल का कोई भरोसा नहीं
कब डूबे कश्ती, मृत्यु भँवर नहीं बहाव है।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
कृपया,आमंत्रण में1 जुलाई पढ़ें।
हटाएंसस्नेह आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आपका
हटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आपका
हटाएंये रात ना होती ती थके प्राण कहाँ विश्राम पाते! एक भावपूर्ण आत्म संवाद संदीप जी. हार्दिक बधाई 🙏
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आपका
हटाएंसाँझ में छुपी है सुबह की मिठास भी और दोपहरी की खटास भी, रात तीनों को समेट लेती है और तरोताज़ा कर फिर भेज देती है एक नयी यात्रा के लिए
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आपका
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