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पुरवाई

शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

भय बुनता है जीवन


 

सांझ

कभी ठहरकर देखो

एक 

पूरी रात

बिना सतरंगी सपनों के।

देखो तो सही

एक पूरी आबादी

बे -सपना

बदहवास सोती है 

पूरा दिन थककर।

ठहरो तो पाइपों में

झांक लेना

क्योंकि 

कहते यहां जिंदगी

अभी तक जाग नहीं पाई।

पाइप के सिराहने

सपने नहीं

भय बुनता है जीवन।

ठहरो तो 

घनी बस्ती हो आना रात

सदियों ऐसी बस्ती

सांझ 

नहीं देख पाती।

झोपड़ियों में जागते

कुछ बच्चे मिलें

तो उन्हें दे आना

उम्मीद

कि

सुबह होगी

बेशक 

वे 

झिझकेंगे

क्योंकि 

उनका जीवन

केवल अंधेरे को पढ़ता है

समझता है

जीता है

अपनाता है

सांझ

में सतरंगी सपने भी होते हैं

वे कहां जानते हैं...।

जानता हूँ 

रात 

और 

अधेरा

किसी को पसंद नहीं

लेकिन

एक आबादी

रात 

जीती है

रात

मरती है

सुबह के इंतज़ार में..।

18 टिप्‍पणियां:

  1. जीती है
    रात
    मरती है
    सुबह के इंतज़ार में..।
    ... कितना सच लिखा आपने ... अनुपम अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 15 फ़रवरी 2021 को चर्चामंच <a href="https://charchamanch.blogspot.com/ बसंत का स्वागत है (चर्चा अंक-3978) पर भी होगी।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक आबादी
    रात
    जीती है
    रात
    मरती है
    सुबह के इंतज़ार में..।

    उम्दा... मर्मस्पर्शी रचना 🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
  4. इस रचना पर क्या कहूँ, ऐसी रचनाओं को सिर्फ महसूस किया जा सकता है !

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  5. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
    सादर

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