सांझ
कभी ठहरकर देखो
एक
पूरी रात
बिना सतरंगी सपनों के।
देखो तो सही
एक पूरी आबादी
बे -सपना
बदहवास सोती है
पूरा दिन थककर।
ठहरो तो पाइपों में
झांक लेना
क्योंकि
कहते यहां जिंदगी
अभी तक जाग नहीं पाई।
पाइप के सिराहने
सपने नहीं
भय बुनता है जीवन।
ठहरो तो
घनी बस्ती हो आना रात
सदियों ऐसी बस्ती
सांझ
नहीं देख पाती।
झोपड़ियों में जागते
कुछ बच्चे मिलें
तो उन्हें दे आना
उम्मीद
कि
सुबह होगी
बेशक
वे
झिझकेंगे
क्योंकि
उनका जीवन
केवल अंधेरे को पढ़ता है
समझता है
जीता है
अपनाता है
सांझ
में सतरंगी सपने भी होते हैं
वे कहां जानते हैं...।
जानता हूँ
रात
और
अधेरा
किसी को पसंद नहीं
लेकिन
एक आबादी
रात
जीती है
रात
मरती है
सुबह के इंतज़ार में..।
जीती है
जवाब देंहटाएंरात
मरती है
सुबह के इंतज़ार में..।
... कितना सच लिखा आपने ... अनुपम अभिव्यक्ति
जी सीमा जी...। आभार आपका
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 15 फ़रवरी 2021 को चर्चामंच <a href="https://charchamanch.blogspot.com/ बसंत का स्वागत है (चर्चा अंक-3978) पर भी होगी।
जी बहुत आभार...।
हटाएंएक आबादी
जवाब देंहटाएंरात
जीती है
रात
मरती है
सुबह के इंतज़ार में..।
उम्दा... मर्मस्पर्शी रचना 🌹🙏🌹
जी बहुत आभार आपका...।
हटाएंयथार्थ को कहती मर्मस्पर्शी रचना ।
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका...।
हटाएंदिल को छूती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका
हटाएंदिल में उतरती हुई रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका
हटाएंइस रचना पर क्या कहूँ, ऐसी रचनाओं को सिर्फ महसूस किया जा सकता है !
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका...।
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका...।
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
जी आभार आपका...।
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