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पुरवाई

Friday, February 5, 2021

गैरत की हरियाली है

 


ये 

जमीन है

और

हम हैं।

दरक दोनों 

रहे हैं।

जमीन

की दरारों

में 

गैरत की हरियाली है।

आदमी की 

दरार में 

हरियाली नहीं

गहरा सूखा है।

सूखने में 

जमीन 

का रुदन 

गहरा है।

जमीन के 

कंठ 

का हरापन

उसका हलफनामा है।

आदमी 

का हलफनामा

पीला हो चुका है।

अब सूखे और आदमी

के बीच 

जमीन नहीं है।

आदमी

पैरों नहीं चल रहा

अब जमीन नहीं है।

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 08 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. दिलचस्प... ज़मीन के बहाने कुछ अहम बातें उठाई हैं आपने..

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  3. अति सुन्दर कथ्य ।

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