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पुरवाई

Sunday, February 7, 2021

सुनो ना मां दुनिया अच्छी नहीं है


 

बादल की पीठ पर

कुछ 

गहरे निशान हैं

जो

फुटपाथ 

तक 

नज़र आ रहे हैं।

लैंपपोस्ट

से 

सिर टिकाए

एक 

भयभीत सा बच्चा 

उन्हें सहला रहा है।

आसमां की ओर

देख 

बुदबुदा रहा है

मां 

तुम आईं थीं क्या ?

ये 

पैरों के निशान

तुम्हारे ही तो हैं।

देख रहा हूँ

बादल

से 

जमीन तक

केवल 

मां 

ही आ सकती है

सिर पर हाथ फेरने

सुलाने...।

सुनो ना मां

दुनिया 

अच्छी नहीं है

ये 

फुटपाथ पर

सोने 

पर ठिठुरते शरीर पर

चादर भी

नहीं ओढ़ाती...।

ठंड बहुत है

मां 

आज रात

तुम्हारे 

पैरों के निशान

की गरमाहट से

सो 

जाऊंगा।

बस

तुम सुबह तक 

इन 

निशानों

को मिटने न 

देना

मैं तुम्हारे पास आना 

चाहता हूँ।

सुनो मां

रात हो गई है

वरना

अभी

निकल पड़ता

इन 

पदचिन्हों को 

बटोरकर

थैले में रख

तुम्हारी ओर।

रात में बहुत डर लगता है

मां।

14 comments:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    09/02/2021 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    Replies
    1. जी बहुत आभार कामिनी जी...।

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  3. जी लिखने के बाद मुझे भी ऐसा ही महसूस हुआ...। आभार आपका।

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  4. हृदयस्पर्शी सृजन ।

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  5. हृदय स्पर्शी रचना।
    गहराई से उठती वेदना।
    अभिनव सृजन।

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  6. Replies
    1. सुप्रभात...। आभार आपका

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