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पुरवाई

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

आंसुओं की भी तो भाषा होती है


 शब्द

हर बार जरुरी तो नहीं

आंसुओं

की भी तो भाषा होती है

पलकों की

सीलन 

की मात्रा

का भी तो

हिसाब लगाया जा सकता है।

ये कैसा जहां है

जो 

पूछता ही नहीं

कि 

आंखों के पनीली होकर 

बह जाने का दर्द क्या होता है

कोई सुनता ही नहीं

कि 

आंसुओं से डबडबाई आंखों में 

नमक कितना गहरे चुभता है

कितना खारा हो जाया करता है

कोई कोमल मन।

क्या हम

ऐसी कोई सदी जानते हैं

कल्पना में उसे 

दे सकते हैं आकार। 

देना होगा

क्योंकि ये 

सदी तो

दुखों से भरी हुई

एक नमक का दरिया है

जिसे

पार करना अब यूं 

आसान भी तो नहीं।

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2043...अपने पड़ोसी से हमारी दूरी असहज लगती है... ) पर गुरुवार 18 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर गहन भाव है रचना में सार्थक सृजन।

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