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पुरवाई

Sunday, March 14, 2021

कटे पेड़ के शरीरों वाला जंगल


 नहीं जानता

तुम

कैसे सो पाते हो 

चैन से

उस रात

जब पेड़ का एक बाजू

काट दिया जाता है

और 

तुम तक

आवाज़ नहीं पहुंचती।

नहीं जानता

तुम

कैसे मुस्कुरा पाते हो

किसी 

कटे जंगल

में

सूखे पेड़ों के

आधे अधूरे

जिस्मों के बीच।

नहीं जानता

तुम्हें

पेड़ का कटना

सदी

पर प्रहार क्यों नहीं लगता।

नहीं जानता

पेड़ों के समाज

में

अब 

आदमी का

प्रवेश

निषिद्ध है

और हम बेपरवाह।

मैं

इतना जानता हूँ

कटे

पेड़

के शरीरों वाला जंगल

हमारे समाज की

आखिर सीमा है।

मैं 

इतना जानता हूँ

बिना

पेड़ों वाली सुबह

हो नहीं सकती।



20 comments:

  1. सटीक प्रश्न उठाती उत्कृष्ट रचना, हृदय को बेध गईं आपकी पंक्तियां..

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    1. बहुत आभार जिज्ञासा जी...प्रकृति पर सतत और समग्र लेखन जरुरी है।

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  2. उजाड़कर पेड़ की जड़ों को बसी बस्तियों की नींव,
    शाखों,पत्तियों,पक्षियों के शाप से कभी मुक्त कहाँ हो पाते हैं....आजीवन।
    -----
    बेहतरीन चिंतन।
    प्रणाम सर।ः
    सादर।

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  3. जाड़कर पेड़ की जड़ों को बसी बस्तियों की नींव,
    शाखों,पत्तियों,पक्षियों के शाप से कभी मुक्त कहाँ हो पाते हैं..-वाह बहुत अच्छी पंक्तियां हैं श्वेता जी...। आभार आपका।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी बहुत आभार आपका यशोदा जी...।

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  5. वाकई , पेड़ों के बिना कैसा जीवन ।
    संदेश देती सुंदर रचना ।

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  6. पेड़ों के बिना मानव का अस्तितत्व हो ही नहीं सकता, इन्हें काटना अपने आपको क्षति पहुँचाना ही है, सार्थक लेखन

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  7. यथार्थ पर कटाक्ष करती रचना इंसान पेड़ो पर नहीं खुद पर कुठाराघात कर रहा है

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  8. हम धीरे धीरे संवेदनाशून्य हो रहे हैं

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  9. सही कहा आपने "ये हमारे समाज की आखिर सीमा है" हम खुद ही खुद की सांसे छीनने पर तुले है
    सुंदर सन्देश देती रचना....

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  10. मैं

    इतना जानता हूँ

    बिना

    पेड़ों वाली सुबह

    हो नहीं सकती।------- बहुत सुन्दर रचना _

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  11. जी बहुत आभार आपका...

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