कोई सुबह तो आएगी
जब
फूल पर
गिरी ओस की बूंद
प्रकृति का आशीष समझी जाएगी
उसकी तुलना
हीरे की दमक से
नहीं की जाएगी।
फूलों के रंग पर
नहीं
भंवरे फूलों की तासीर पर
फिदा होंगे
फूल
भंवरों की भूख नहीं
उनके नेह का
उभार होंगे।
कांटों का पहरा जब
फूलों से
हटा लिया जाएगा
गुलाब जब
फूलों के राजा
की पदवी
त्याग
नेतृत्व का
नया सवेरा लाएगा।
कोई सुबह तो आएगी
जब सूरज
फूलों के
जिस्मों को गर्मी से
कतई नहीं झुलसाएगा
बारिश उन्हें
अपने क्रोध में
नहीं बहाएगी
कोई सुबह तो आएगी।
मनुष्य की नजरें
गुलाब में
प्रेम
के रंग की सुर्खी
की जगह
देखेंगी
उसके गहरे से सौंदर्य मौन को
कोई सुबह तो आएगी।
आशा के किरन बिखेरती बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ..
ReplyDeleteआपका बहुत आभार जिज्ञासा जी।
Deleteबहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआपका बहुत आभार शांतनु जी।
Deleteअच्छा है न प्रकृति के विविध रंगों को मानवीय रूपों के साथ सामंजस्य कर बिंबित किया जाता है यही भावात्मक जुड़ाव प्रकृति और मानव का सृष्टि में प्रेम का कारण हैँ।
ReplyDeleteक्षमा सहित मेरी समझ के अनुरूप ऐसा कहे हम।
सादर प्रणाम सर।
प्रकृति और मन में एक खूबसूरत सा रिश्ता है जिसे दोनों ही महसूस करते हैं, तभी हम प्रकृति को समझ पाते हैं तभी हम अपने मन को प्रकृति की भाषा समझने के काबिल बना पाते हैं। आपका बहुत आभार।
Deleteसुन्दर चित्रण।
ReplyDeleteआपका बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी।
Deleteबहुत सुन्दर मधुर चित्रण |
ReplyDeleteआभार आपका...
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