आसमान की
सतरंगी काया
श्वेत बादलों के उत्सव
का हिस्सा है।
बादलों पर
उत्सव में
सबकुछ साफ नज़र नहीं आता।
बादलों में
बिना
दीवारों के घर हैं।
घरों में
खिड़कियां भी
और उनसे
झांकते
हमारे अपने जो
आसमान की श्वेत काया हो गए।
वे देखते हैं हमें
हमारी नेकी पर
खुश होते
और
बुरे बर्ताव पर खिन्न।
नज़र नहीं आते
वे
बादलों के उत्सव का
हिस्सा होते हैं।
वो जो आसमान पर
रंग देख रहे हो न
वो
उन शांत और बेकाया
लोगों
को
अपनों से मिलवाने का
तरीका है।
खैर
बादलों की कालोनी
के
घर
अब भी महकते है
अपनेपन की खुशबू से...।
बहुत सुंदर कल्पना,बादल आसमान की काया...
ReplyDeleteसुंदर भाव।
अलग रंग से गढ़ी सुंदर कविता सर।
सादर।
जी आभार आपका श्वेता जी..
Deleteआभार आपका...।
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन।
बहुत आभार आपका..
Deleteबहुत बहुत आभार आपका
ReplyDeleteवाह!बहुत ख़ूबसूरत लिखा है आपने।
ReplyDeleteसादर
आभार आपका अनीता जी...।
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