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पुरवाई

Monday, April 12, 2021

मौसम में उसके आसपास


 तुमने

फूल 

देखा मैंने देखी

उसकी गहराई।

तुमने 

रंग देखे

मैंने 

देखी

रंगों की जुगलबंदी।

तुमने 

फूल का 

खिलना देखा

मैंने

उसके अंकुरण के सफर को।

तुमने 

उसका सौंदर्य देखा

मैंने 

देखी सादगी।

तुमने

उसके सौंदर्य के शिखर

तक 

पहुंचाई अपनी 

ख्वाहिश

मैंने 

उसे 

केवल खिलने दिया।

तुम 

खड़े रहे उसके

उस खिले हुए

मौसम में उसके आसपास

जैसा 

भंवरे को 

होती है 

फूल के रस की आस।

मैं 

उसे 

बस रोज देखता रहा

उसकी 

सादगी के साथ

उसकी उम्र के 

अच्छे दिनों में।

तुम 

तब वहां से बढ़ गए

अगले 

फूल की ओर

जब 

इसकी पत्ती पर

उम्र की 

पहली झुर्री

आई थी नज़र।

तुम अब नहीं आते वहां

जहाँ कभी

तुम्हारी नज़रें

ठहर जाने का वादा 

करतीं थीं पूरी उम्र।

तुम्हें 

बताऊँ

अब 

वो फूल 

सूख चुका है

झुर्रियों वाले

उम्रदराज़ मौसम को 

जी रहा है

मैं

आज 

भी उसके 

रेगिस्तान में 

उसके साथ हूँ।

अब बस

वो 

फूल कभी कभार

सूखने 

के 

दर्द से 

कराहता है

कभी कभी

हवा के साथ

उसकी 

उम्र वाली कराह

सुनाई देती है...।


19 comments:

  1. आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी।

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  2. बहुत बढ़िया ,कितनी खूबसूरती से फूल और इंसान के जीवन को एकीकार कर दिया आपने । दोनो का सफर एक जैसा ही था,नायाब सृजन ।

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    1. आभार जिज्ञासा जी...। आपकी टिप्पणी श्रेष्ठ करने की प्रेरणा देती है...

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  3. Replies
    1. अनीता जी बहुत आभार...।

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  4. बहुत बढ़िया

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  5. बस नजर और नजरिए का फेर है
    सच्चा साथी सुख के साथ दुःख में बराबर का हिस्सेदार होता है।
    बहुत ही सुंदर सृजन ,आपको नववर्ष और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये

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    1. जी बहुत आभार आपका कामिनी जी...।

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  6. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन।

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  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. जी बहुत आभार आपका अनुराधा जी...।

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  8. दोनों के देखने में फर्क ने फूल के जन्म की पूरी कहानी बयां कर दी ...

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    1. जी बहुत आभार आपका संगीता जी...।

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  9. जी बहुत आभार आपका।

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