आज से कोरोना काल पर कविताएं...
1.
सुबह
कोई हिचकी
गहरे समा गई
किसी
परिवार
की
आंखों से
छिन गया
सूरज।
आंखों में
सपनों की फटी हुई
मोटी सी पपड़ी है
जिसमें
गहरे
आंसुओं का नमक है।
सभ्यता
और
मानवीयता
का नमक हो जाना
आदमी
की खिसियाहट भरी
चालकी का
टूटकर
कई हिस्सों में
बिखर
जाना है।
सुबह
सूरज के साथ जागा
कोई परिवार
अपने घर
असमय घुस आई
स्याह रात में
दीवारों से सटा
सुबक रहा है
देख रहा है
अंदर और बाहर
गहराती रात।
दूर
कहीं कोई
वृद्धा
सूखी पसलियों को
पीट रही है
झुर्रियों से बहते
आंसू
में मिट्टी है
बहुत सारा नमक भी।
क्रूर बाजार
घूर रहा है
वृद्धा के विलाप पर।
भीड़
भाग रही है
बदहवास सी
अपनों के साथ
अपनों से दूर।
अखबार
का फटा
हिस्सा
काला है
खबर है
जहरीली हो गई है हवा...।
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
ReplyDeleteजी आभारी हूं आपका आदरणीय।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-०४-२०२१) को 'ज़िंदगी के मायने और है'(चर्चा अंक- ३९४०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
जी आभारी हूं आपका अनीता जी।
ReplyDeleteवाह! आज के दृश्य का मर्मांतक वर्णन । सादर शुभकामनाएं आपको ।
ReplyDeleteकुछ और लिखना बहुत मुश्किल हो रहा है, मन को कैसे रोका जा सकता है। जब चारों ओर चीत्कार हो तब मन वही लिखता है जो लिखा जाना चाहिए। आभार आपका जिज्ञासा जी।
Deleteवर्तमान परिदृश्य का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती आपकी रचना की गहराई मन को छू गई,सादर नमन
ReplyDeleteबहुत आभारी हूं आपका अभिलाषा जी।
Deleteआप प्रकृति पर यदि हमारी पत्रिका पढना चाहती हैं तब मुझे इस नंबर 8191903651 पर अपना व्हाटसऐप नंबर भेजिएगा। आभार। देखियेगा हमारी पत्रिका और उस पर टिप्पणी भी चाहते हैं।
अखबार
ReplyDeleteका फटा
हिस्सा
काला है
खबर है
जहरीली हो गई है हवा...।
कितनी मार्मिक रचना !
बहुत आभारी हूं आपका उषा किरण जी। आप प्रकृति पर यदि हमारी पत्रिका पढना चाहती हैं तब मुझे इस नंबर 8191903651 पर अपना व्हाटसऐप नंबर भेजिएगा। आभार। देखियेगा हमारी पत्रिका और उस पर टिप्पणी भी चाहते हैं।
Delete"खबर है
ReplyDeleteजहरीली हो गई है हवा...।"
हवा ही नहीं मानसिकता भी जहरीली हो गई है संदीप जी,
बेहद मार्मिक सृजन,सादर
बहुत आभारी हूं आपका कामिनी जी। आप प्रकृति पर यदि हमारी पत्रिका पढना चाहती हैं तब मुझे इस नंबर 8191903651 पर अपना व्हाटसऐप नंबर भेजिएगा। आभार। देखियेगा हमारी पत्रिका और उस पर टिप्पणी भी चाहते हैं।
Deleteबेहद हृदयस्पर्शी सृजन
ReplyDeleteबहुत आभारी हूं आपका अनुराधा जी। आप प्रकृति पर यदि हमारी पत्रिका पढना चाहती हैं तब मुझे इस नंबर 8191903651 पर अपना व्हाटसऐप नंबर भेजिएगा। आभार। देखियेगा हमारी पत्रिका और उस पर टिप्पणी भी चाहते हैं।
Deleteसामायिक हालतों पर हृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteशब्द शब्द दारुण कहानी।
बहुत आभार आपका...।
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