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पुरवाई

मंगलवार, 11 मई 2021

ये हार है

 

सुबकते हुए

सुना है

नदी को।

पानी में उसके आंसू

सतह पर तैर रहे थे

उन शवों के इर्दगिर्द

जहां 

उम्मीद हार गई थी।

जहां

मानवीयता हार गई थी

जहां

जीवन हारकर घुटनों के बल आ गया था।

नदी

का रोना

सदी का रोना है

नदी 

शवों को नहीं ढो पाएगी

उसे

उसकी नजरों में मत गिराईये

नदी 

चीख नहीं सकती

नदी

मौन को पीकर

धरातल में लौट जाएगी

सदियों 

नहीं लौटेगी

वह धरा पर

क्योंकि उसका अवतरण

जीवन के लिए हुआ था

शवों को

ढोने के लिए कदाचित नहीं।

सोचियेगा

इस सदी के चेहरे पर एक दाग है

इस दौर में

एक नदी

जीवन ढोते हुए

अनचाहे ही

शवों को ढोने लगी

ओह

ये 

हार है

इसके अलावा और कुछ भी नहीं।

5 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आज कल तो लोग बहा दे रहे ऐसे ही शवों को नदी में ।

    नदी की आत्मा भी त्रस्त हो गयी है । सुंदर लेखन ।

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  3. जी बहुत आभार आपका संगीता जी। ये नदी के लिए भी अच्छा दौर नहीं है।

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  4. एकनदी/ जीवन ढोते हुए/
    अनचाहे ही /शवों को ढोने लगी///
    भयावह है ये कड़वा सच!!

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  5. जी रेणु जी ये सच बेहद कठिन है और जहरीला भी...लेकिन ये हम सभी ने देखा है इसलिए इसे भूल पाना भी आसान नहीं होगा।

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