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पुरवाई

Sunday, June 27, 2021

मुझे पसंद है


 









तुम्हें पसंद है

मुझमें

स्वयं को खोजना

और 

मुझे पसंद है

तुम्हारे चेहरे पर नजर आना।

तुम्हें पसंद है

मेरे शब्द, भाव, गहनता

मुझे पसंद है

तुम्हारा वह

होले से आकर मुझे छू लेने वाला अहसास।

तुम्हें पसंद है

बारिश और उन बूंदों में

मेरा साथ

मुझे पसंद है

घर का दालान, बूंदें और तुम्हारे हाथों का स्पर्श।

तुम्हें पसंद है

अपने घर के दालान की मिट्टी की महक

मुझे पसंद है

तुम्हारे उस मर्म की गंध को छूते भाव।

तुम्हें पसंद है

घर के आंगन का नीम

मुझे पसंद है

तुम्हारा उस नीम को छूकर

पहली बार

मेरे मन के करीब आना।

तुम्हें पसंद है

सर्द हवा में मेरे मफलर में गर्माहट के रंग

मुझे पसंद है

तुम्हारे चेहरे का गुलाबी अपनापन।

तुम्हें पसंद है

हरीतिमा 

और मुझे पसंद हो

तुम 

क्योंकि

तुम और में 

एक ऐसे घर को गूंथ रहे हैं

जहां

प्रकृति के अंकुरण 

बहुत गहरे होंगे...।

हां 

सच हमारा घर महकता है

तुम्हारी और हमारी

इन नेह की फुहारों से।



20 comments:

  1. जी बहुत आभार आपका कामिनी जी...।

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  2. वाह,संदीप जी, कितनी खूबसूरती से आपने मन के सुंदर भावों की लड़ियां पिरो दीं, जो एक माला बन गई।सुंदर सृजन।

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    1. आभार जिज्ञासा जी। शब्द कुछ ही गूंथ पाया... बहुत से रह गए...।

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  3. वाह!सुन्दर एहसास पिरोए हैं!

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  4. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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  5. खूबसूरत एहसास पढ़कर दिल खुश हो गया

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  6. वाह!बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति।
    पहली बरसात का एहसास लिए।
    सादर

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  7. बहुत सुंदर प्रकृति सौंदर्य के साथ श्रृंगार रचना।

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  8. जी बहुत आभार आपका

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  9. क्योंकि

    तुम और में

    एक ऐसे घर को गूंथ रहे हैं

    जहां

    प्रकृति के अंकुरण

    बहुत गहरे होंगे...।

    बहुत प्यारी अभिव्यक्ति

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  10. आपका बहुत बहुत आभारी हूं संगीता जी।

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  11. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  12. तुम्हें पसंद है//मुझमें/स्वयं को खोजना/और /मुझे पसंद है/तुम्हारे चेहरे पर नजर आना।////
    क्या बात है संदीप जी ! यही भाव जोड़ता है दो मानों को और एक सुखद घरोंदे की नीव यही भाव होता है | अनुराग भरी अभिनव रचना |

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