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पुरवाई

Friday, July 2, 2021

मौन हरियाली












किसी 

निर्बल और सूखे वृक्ष की टहनी 

से बेशक

हरेपन की उम्मीद 

सूख जाए

लेकिन 

कोई थका हुआ पंछी

उस पर

सुस्ताने ठहरता तो है।

सूखे वृक्ष

बेशक

हमारे वैचारिक दायरे में भी

सूख जाया करते हैं

लेकिन

उस पर कुछ

जीव

रेंगते तो हैं।

हम बेशक मान लें

कि

सूखा वृक्ष

अब 

धरा पर बोझ है

लेकिन

उसकी जड़ों में

संभव है

पल रहा हो 

कोई

कोई पौधा

उसके अनुभव की

मिट्टी और खाद पाकर।

हम बेशक मान लें

कि 

सूखा

वृक्ष

भयावह लगता है

लेकिन

उस पर बैठ

कभी तो

कोई पक्षी

आलिंगन करता होगा

नए जीवन की

दिशा 

बुनने के लिए।

बेशक सूखे

शरीर अंत का आग़ाज हैं

लेकिन

सूखे

वृक्ष

और उसकी शाखाएं

अक्सर

बुन रही होती हैं

हमारे लिए

भविष्य की मौन हरियाली

जीवन

उम्मीद 

और अपनत्व।

 

10 comments:

  1. बहुत बार जिसे हम सूखा हुआ वृक्ष मान लेती हैं ,उसकी जड़ों में फिर से हरा होने की ताकत होती है । खूबसूरत ख्याल ।

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    1. आपका बहुत बहुत आभारी हूं संगीता जी।

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  2. हम जाने क्यों भूल जाते हैं कि हमें भी एक दिन ठूंठ होना ही है

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    1. आपका बहुत बहुत आभारी हूं कविता जी।

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  3. सशक्त सकारात्मक भाव !

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    1. आभार आपका अनुपमा जी...

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  4. अद्भुत है यह अभिव्यक्ति। प्रत्यक्षतः सरल किन्तु वस्तुतः इतने गहन भाव लिए हुए मानो सागर का जल हो जिसकी थाह उसमें उतरकर ही ली जा सकती है।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेंद्र जी।

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  5. सुंदर भाव प्रधान रचना,
    सूखे

    वृक्ष

    और उसकी शाखाएं

    अक्सर

    बुन रही होती हैं

    हमारे लिए

    भविष्य की मौन हरियाली

    जीवन

    उम्मीद

    और अपनत्व।.. गहन भाव,संदीप जी सचमुच ये बहुत बडे़ अनुभव की बात है,सादर नमन आपको।

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    1. जी बहुत गहन है क्योंकि मेरे मन केवल प्रकृति पर ही विचार आते रहते हैं...मैं चाहता हूं इसके सारे दर्द खत्म हो जाएं...। आभारी हूं आपका जिज्ञासा जी।

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