किसी
निर्बल और सूखे वृक्ष की टहनी
से बेशक
हरेपन की उम्मीद
सूख जाए
लेकिन
कोई थका हुआ पंछी
उस पर
सुस्ताने ठहरता तो है।
सूखे वृक्ष
बेशक
हमारे वैचारिक दायरे में भी
सूख जाया करते हैं
लेकिन
उस पर कुछ
जीव
रेंगते तो हैं।
हम बेशक मान लें
कि
सूखा वृक्ष
अब
धरा पर बोझ है
लेकिन
उसकी जड़ों में
संभव है
पल रहा हो
कोई
कोई पौधा
उसके अनुभव की
मिट्टी और खाद पाकर।
हम बेशक मान लें
कि
सूखा
वृक्ष
भयावह लगता है
लेकिन
उस पर बैठ
कभी तो
कोई पक्षी
आलिंगन करता होगा
नए जीवन की
दिशा
बुनने के लिए।
बेशक सूखे
शरीर अंत का आग़ाज हैं
लेकिन
सूखे
वृक्ष
और उसकी शाखाएं
अक्सर
बुन रही होती हैं
हमारे लिए
भविष्य की मौन हरियाली
जीवन
उम्मीद
और अपनत्व।
बहुत बार जिसे हम सूखा हुआ वृक्ष मान लेती हैं ,उसकी जड़ों में फिर से हरा होने की ताकत होती है । खूबसूरत ख्याल ।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभारी हूं संगीता जी।
Deleteहम जाने क्यों भूल जाते हैं कि हमें भी एक दिन ठूंठ होना ही है
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभारी हूं कविता जी।
Deleteसशक्त सकारात्मक भाव !
ReplyDeleteआभार आपका अनुपमा जी...
Deleteअद्भुत है यह अभिव्यक्ति। प्रत्यक्षतः सरल किन्तु वस्तुतः इतने गहन भाव लिए हुए मानो सागर का जल हो जिसकी थाह उसमें उतरकर ही ली जा सकती है।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेंद्र जी।
Deleteसुंदर भाव प्रधान रचना,
ReplyDeleteसूखे
वृक्ष
और उसकी शाखाएं
अक्सर
बुन रही होती हैं
हमारे लिए
भविष्य की मौन हरियाली
जीवन
उम्मीद
और अपनत्व।.. गहन भाव,संदीप जी सचमुच ये बहुत बडे़ अनुभव की बात है,सादर नमन आपको।
Deleteजी बहुत गहन है क्योंकि मेरे मन केवल प्रकृति पर ही विचार आते रहते हैं...मैं चाहता हूं इसके सारे दर्द खत्म हो जाएं...। आभारी हूं आपका जिज्ञासा जी।