पेज

पुरवाई

Monday, June 7, 2021

आपदा वाले शहर का डर

 















खिड़की से

झांकती वृद्धा

की कमजोर आंखें

टकटकी लगाए है

बादलों पर।

कानों

में गूंज रही है

आपदा से बचाव के लिए

शोर मचाती

समाचार वाचिका।

तूफान आने को है

सूखी आंखों में

चिंता की

गहरी धूल

पट चुकी थी

रेतीला तूफान तो

आ चुका...।

दरवाजे की

बंद कुंडी

पर बार-बार

थरथराता हुआ हाथ

उसे परख रहा था।

कभी बच्चों के सिर पर

हाथ फेरती

वो कहती

देखना

ये सब झूठ है

ये समाचार वाले

भगवान थोड़े ही हैं

कुछ भी कहे जा रहे हैं।

हमारा घर मजबूत है

तुम्हारे दादाजी ने

अपने हाथों

इसकी ईंट जोड़ी हैं।

फिर अगले पल

खिड़की की झीरी से

बाहर झांकती।

वो देखो

मैं

कहती थी

सभी बादल काले कहां हैं

बीच में एक सफेद भी है।

तभी टीवी पर आवाज़

तेज हो जाती है

अब तूफानी हिस्से में

हवा चलने लगी है

वृद्धा दौड़कर

खिड़की के सुराख पर

रखती है ऊंगलियां।

कहां है हवा

हां थोड़ी है तो

लेकिन

ऐसी तो रोज होती है

फिर

आवाज़ गूंजती है बस

कुछ देर में

तूफान आने वाला है

हम आपको देते रहेंगे

हर पल की खबर।

वृद्धा अबकी चीखती है

बस...बंद कर दे इसे

और

डर सहा नहीं जाता

आने दो तूफान को

वो इस

डर के बवंडर से

बड़ा नहीं होगा...।

वृद्धा बच्चों को

कलेजे से लगाए

एक जगह बैठ

कहती है

देखना

तुम्हारे दादाजी का

घर बहुत मजबूत है

कई तूफान झेले हैं

हमने भी...।

कुछ खामोशी

फिर

हवा तेज होती गई

वृद्धा की

आंखों की धूल

नमक हो कोरों

पर जम गई। 

भय 

आंखों की कोरों से बहकर

जमीन पर आ गिरा

अब बच्चे 

उन आंसुओं को 

ये कहते हुए पोंछ रहे थे 

तुम सच कहती थीं

ये 

मकान दादाजी ने 

अपनी मेहनत से बनाया है

देखो हमें कुछ नहीं हुआ

हम 

तूफान 

को हराकर जीत गए।

 


12 comments:

  1. Replies
    1. बहुत आभार सरिता जी....

      Delete
  2. जिन्हें भय झेलना पड़ता है उनकी हालत वे ही जानते हैं, लाखों को घर छोड़कर जाना पड़ता है, तूफ़ान का सामना करना कोई आसान तो नहीं, वृद्धा के भय को बखूबी चित्रित किया है आपकी लेखनी ने

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी।

      Delete
  3. वाह ! मानव जीवन का विकराल दर्द आपकी लेखनी सतत लिखती चली गई एक कविता कई संदेश दे गई, बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आपका बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी।

      Delete
  4. बहुत ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी शब्दचित्रण....
    वृद्धा और उसके परिवार का चित्र तूफान के भय के साथ ही आँखों में समाता हुआ दिल को छू गया।

    ReplyDelete
  5. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।

    ReplyDelete
  6. भय ज्यादा मारता है .... बहुत मर्मस्पर्शी रचना ...

    ReplyDelete
  7. बहुत बहुत आभार आपका

    ReplyDelete
  8. जी इसे पढते वक्त शरीर के रोमटें खड़े हो गये...आंखों में अचानक थोड़े आंसू आ गयें और कुछ वक्त के लिए मैंने पढने से खुद को रोक दिया...तब फिर आगे पढ़ा। बहुत ही हृदयस्पर्शी।
    घर में बुजुर्गों के होने का मतलब किसी भी बुरी परिस्थिति में हौंसलों से भरा घर का होना होता है।
    वाकई आपने बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन पलों का एहसास कराया...इस रचना के माध्यम से। मेरी ओर से आपको बहुत-बहुत धन्यवाद एवं शुभकामना कि आप यूं ही मन को छूने वाली और खूब रचनाएं रचे।

    ReplyDelete
  9. आदरणीय प्रकाश जी पहले तो मैं आपका आभारी हूं कि आपने कविता को इतने गहरे तक महसूस किया। इस तरह की रचनाएं सत्य का चेहरा होती हैं, उन्हें हम नकार नहीं सकते, हम इन्हें महसूस कर शब्द दे दें तो बेहतर है क्योंकि ये वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए संग्रहणीय हो जाया करती है...। आपका बहुत बहुत आभार।

    ReplyDelete