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Friday, June 4, 2021

...क्योंकि वन्य जीव श्वेत पत्र जारी नहीं कर सकते



 (विश्व पर्यावरण दिवस पर खास कविता...)

अक्सर हम

जंगल की मानवीय भूल पर

क्रोधित हो उठते हैं

जंगल से हमारी आबादी में

जंगली जीव की आदम

को 

पलक झपकते ही 

करार दे देते हैं

हिंसा

और उसे हिंसक।

कभी

जंगल जाईयेगा

पूछियेगा

कटे वृक्षों से

शिकार होकर

मृत 

वन्य जीवों की अस्थ्यिों के ढांचों से

हमारी आबादी की प्यास से सूख चुके

जंगल के

तालाबों, नदियों से

जंगल के धैर्य से

हमारे पैरों खूंदी गई

वहां की

लहुलहान आचार संहिता से

कि क्या कोई 

शिकायत है

उन्हें मानव से...?

जवाब यही आएगा

नहीं

वो तो इंसान है

जानवर नहीं

क्योंकि जानवर तो

जंगल में रहते हैं। 

आखिर

जंगल

सभ्य और हमारी बस्ती

असभ्य क्यों हो रही है।

जंगल आखिर 

बहुत दिनों तक

जंगल नहीं रहने वाला

क्योंकि

जंगल की छाती पर

सरफिरे 

अब शहर गोद आए हैं। 

जंगल

अब शहर होगा

क्योंकि

जंगल

भयाक्रांत है

कट रहा है

सूख रहा है

अस्थियों में बिखर रहा है

और 

हमारे यहां वह 

साजिश में उग रहा है। 

अबकी जंगली जीव को

हिंसक लिखने से पहले

सोचियेगा कि

कौन

अधिक हिंसक है

और 

किसके घर में कौन दाखिल हुआ

और

किसके मन में

हिंसा का जहर है।

आखिर

हमारे यहां आते ही 

उसे 

मार दिया जाता है

क्योंकि वह

हिंसक है

हम जंगल में दाखिल हों

तब 

उसका हमला

भी हिंसा है

क्योंकि

वह रख नहीं सकता

अपना पक्ष

वह 

जारी नहीं कर सकता

कोई श्वेत पत्र

अपनी और अपनों की मौतों पर। 

- अक्सर खबरों में देखता हूं कि जब भी कोई वन्य जीव शहरी आबादी में आता है तब उसे हिंसक करार दे दिया जाता है, लोग उससे भयभीत हो उठते हैं, ये सच है कि वन्य जीव की जगह शहर नहीं जंगल है...तब क्या आदमी की जगह जंगल है...क्या चाहिए उसे जंगल से, क्यों खेल रहा है वह जंगल से...ये नकाबपोश आदमी अपने जंगल से भाग रहा है क्योंकि यहां जीवन मुश्किल हो गया है...ये कविता अंदर उठी चीखों से है कि क्यों हम उन्हें उनका जंगल नहीं लौटा देते...क्यों आएगा कोई अपना घर छोडकर...। सोचियेगा...

संदीप कुमार शर्मा, 

संपादक, प्रकृति दर्शन, मासिक पत्रिका

25 comments:

  1. जब आदमी जंगल में घुसेगा तो जानवर हमारे घर में जरूर घुसेंगे,उनका घर हम छीन रहें है तो जायेगे कहाँ ,सार्थक संदेश ,
    पर्यावरण के लिए आपका ये अभियान जारी रहें और पर्मात्मा आप को सफलता दें,सादर नमन

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    1. जी बहुत आभारी हूं आपका कामिनी जी...। आपकी उम्मीद जगाती प्रतिक्रिया ने नया हौंसला दिया वरना मैं देख रहा हूं कविता को ब्लाॅग पर प्रकाशित किए कई घंटे बीत गए हैं लेकिन अब तक उसे देखने में किसी ने रुचि नहीं दिखाई...चलिये आपने जो लिखा वह मेरे लिए बेहद उत्साहजनक है...। मन से आभार स्वीकार कीजिएगा।

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  2. वाह,बहुत बढ़िया लिखा है आपने।🌻

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    1. आभार आपका पाण्डेय जी...।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6 -6-21) को "...क्योंकि वन्य जीव श्वेत पत्र जारी नहीं कर सकते"(चर्चा अंक- 4088) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. सुप्रभात....। ये सुबह की पहली खुशी है... आपने समझा और सराहा...। मेरी रचना को मान दिया...। आभार कामिनी जी...।

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  5. Replies
    1. आभार आपका अनुराधा जी।

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  6. प्रकृति ने समस्त प्राणियों के भरण-पोषण के पर्याप्त संसाधन दिये हैं अपनी स्वार्थपरता में इन्सान भूल कहाँ स्वीकार करता है । गहन चिंतन लिए उम्दा कृति ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।

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  7. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका जोशी जी।

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  8. सारगर्भित रचना - - नमन सह।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शांतनु जी।

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  9. चिंतनशिल और सारगर्भित रचना, संदिप भाई।

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  10. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी।

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  11. जी बहुत आभार आपका।

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  12. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
    सादर

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  13. बहुत विराट प्रश्न है ये कि हम जंगली हो गए हैं या पशु जंगली होते हैं, संदीप जी आजकल जंगली पशुओं से दोस्ती का कई वीडियो देखने को मिलता है।पर हमें मेरे मामाजी, जो कि वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी थे, ने बचपन में पर्दे पर एक फ़िल्म दिखाई थी जिसमें उनके मित्र जो जंगल के बीच में रहते थे और उनके घर में एक बाघ, दो बंदर,हिरन, कई कुत्ते,दो मोर और कई जानवर एक साथ रहते थे, ये दिखाकर उन्होंने हमें ये समझाया था कि जंगली जानवर प्रेम का भूखा होता है,जब तक छेड़ोगे नहीं,वो तुम्हें कुछ नहीं करेगा, आज की तारीख़ में हमें ये सब देखने को बस सोशल मीडिया पर मिलता है,यथार्थ में नहीं,कहने का मतलब है कि हमें घर घर में प्रकृति प्रेम की अलख जगनी होगी।

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  14. ये एक रिश्ता है जो तभी महकेगा जब दोनों ओर से प्रयास होंगे लेकिन अगुवाई हमें करनी होगी, हम मानव हैं और गलतियां हमारी ओर से हुई हैं इसलिए सुधार की पहल भी हम ही कर सकते हैं। बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी एक गहन और साहस बंधाती प्रतिक्रिया के लिए।

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  15. आखिर

    जंगल

    सभ्य और हमारी बस्ती

    असभ्य क्यों हो रही है।


    **********************
    वह रख नहीं सकता

    अपना पक्ष

    वह

    जारी नहीं कर सकता

    कोई श्वेत पत्र

    अपनी और अपनों की मौतों पर।

    यथार्थ का सटीक चित्रण ...

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  16. जी बहुत आभार आपका संगीता जी।

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