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पुरवाई

Tuesday, July 20, 2021

मैंने देखा है तुम्हें तब भी


 

मैंने देखा है अक्सर

तुम्हें

तब बहुत करीब से

जब 

तुम 

अक्सर थककर सुस्ताती हो 

और सोचती हो पूरे घर को

थकी हुई रात के बाद

अगली सुबह के लिए।

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी

जब उम्र के थक जाने के निशान

तुम्हारे 

चेहरे पर

तब गहरे हो जाते हैं

जब देखती हो तुम

काले बालों के बीच 

एक या दो सफेद बाल

जिन्हें तुम

आसपास देखकर

चुपचाप छिपा लेती हो 

काले बालों के नीचे। 

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी 

जब कोई नहीं उठता

तब

सबसे पहले तुम्हारी टूट जाती है नींद

अक्सर

जिम्मेदारियों को पूरी रात बुनते हुए।

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी 

जब अक्सर थकी हुई तुम

पूरे घर से आसानी से छिपा लेती हो

अपना दर्द, अपनी पिंडलियों की सूजन।

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी

जब कोई भागते हुए

ठहरकर पूछ लेता है 

तुम्हारे आंखों के नीचे 

गहरे होते काले घेरों के बारे में

और तुम मुस्कुरा देती हो। 

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी 

जब अक्सर 

देर रात तक जागती रहती हो

और

दालान पर 

नींद को रखकर 

लेटी रहती हो बिस्तर पर

आहट पाते ही

सबसे पहले पहुंचती हो

और 

बच्चे को गले से लगाकर

कहती हो

देर मत किया करो

मैं 

सो नहीं पाती।

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी

जब मैं अक्सर थक जाता हूं

और तुम भी

तब अक्सर होले से 

तुम मेरे 

माथे पर रखती हो हथेली

कहती हो

परेशान मत होना

सब ठीक हो जाएगा। 

यकीन मानो

तुम्हारा स्पर्श 

मैं गहरे तक महसूस करता हूं

मैं केवल मुस्कुरा देता हूं

यह कहते हुए 

कि 

रख लिया करो

तुम भी अपना ध्यान

इस भागती जिंदगी में।

मैं

इससे अधिक कहता नहीं

तुम

समझ जाती हो

कि 

अक्सर

बहुत कुछ है

जो मैं कहना चाहता हूं

लेकिन 

कहता नहीं

क्योंकि

जानता हूं

यह घर ही है

जो तुम्हें थकने नहीं देता

यह घर 

हां

जिम्मेदारियों को अक्सर

ओढ़कर सो जाना

और

सुबह

उन्हें लिहाफ के साथ लपेटकर 

अलमारी में रख देना

आसान नहीं होता।

मैं तुम्हें देखता हूं 

और

जीता हूं

क्योंकि

तुम्हारे हर दर्द की कसक

पहले मुझे 

अहसास करवाती है 

कि

हम जिम्मेदार हो गए हैं

और 

उम्रदराज़ भी।


18 comments:

  1. बहुत बहुत गहरे एहसास समेटे सुंदर हृदय स्पर्शी रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।

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  2. स्त्री का अस्तित्व ,जिम्मेदारी और भाव प्रबल सकारात्मकता ,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति |

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२१-०७-२०२१) को
    'सावन'(चर्चा अंक- ४१३२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी।

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  4. और

    सुबह

    उन्हें लिहाफ के साथ लपेटकर

    अलमारी में रख देना

    आसान नहीं होता।

    मैं तुम्हें देखता हूं

    और

    जीता हूं, सुंदरता के साथ दिल की गहराइयों का पता दिखाती हुई रचना मन्त्र मुग्ध करती है - - साधुवाद सह।

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    1. आभार आपका सान्याल जी।

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  5. सुन्दर रचना

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  6. जब तुम अक्सर थककर सुस्ताती हो
    और सोचती हो पूरे घर को
    थकी हुई रात के बाद
    अगली सुबह के लिए।....
    रचना की कई पंक्तियों में खुद को,माँ को,आसपास की अनेक स्त्रियों को देखती हूँ। अक्सर वे उम्मीद भी करती हैं कि कोई उन्हें यह सब करते हुए देखे, समझे और अहसास करे। इतने भर से उनकी सारी थकान और वेदना गायब हो जाती है।
    बहुत गहरी रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।

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  7. बहुत ही गहरे भाव से सुसज्जित बहुत ही खास शख्स के लिए लिखी गई अत्यंत सुंदर रचना सर!कितने खुशकिस्मत वाले होते हैं वो लोग ,खास जिनके लिए रचना लिखी जाती है!
    वैसे भी हम इतने किस्मत वाले ठोड़ी है कि कोई खास हमारे लिए कुछ लिखे! 😀😀😀
    हम (ब्लॉगर) ही भले किसी पर लिख दे!😄😄😄😄

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मनीषा जी।

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  8. इतने सब एहसास आप देख पाए , समझ पाए , कितना सुकून मिलता है जब कोई पुरुष स्त्री की भावनाओं को समझते हुए व्यक्त करता है । इस रचना में दिन भर में होने वाली छोटी छोटी घटनाओं को सहेज लिया है ।
    बहुत खूबसूरत रचना ।

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  9. बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी।

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  10. यह कविता जितनी अच्छी एक दृष्टि में प्रतीत होती है, वस्तुतः यह उससे कहीं अधिक अच्छी है। बार-बार पढ़ने पर इसमें महफ़ूज़ एहसास इस तरह धीरे-धीरे दिल में उतरकर जज़्ब होते हैं जिस तरह धीमी आंच पर मक्खन पिघलता है और संबंधित पदार्थ द्वारा अवशोषित किया जाता है।

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  11. जी बहुत आभार आपका जितेन्द्र जी...।

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