जहाज होती है
पानी का जहाज।
कभी
सतह पर
शांत
बहती
कभी
तेज हवा में
हिचकोले लेती।
कभी
मीलों चलकर मुस्कुराती
कभी
पल भर में
खीझ जाती।
कभी
अथाह सागर पर
लिख देती
भरोसा
कभी
धोखे पर
चीख उठती।
कभी
तैरते हुए किनारे लग जाती
फिर
लौट आती
बीच समुद्र के
कभी
किनारे ही डूब जाती।
जिंदगी
जहाज है
पानी का जहाज।
कभी
शांत लहरों पर
गीत गुनगुनाती
कभी
तूफान में
भयाक्रांत हो जाती।
जहाज
और
जिंदगी
दोनों में समानता है
कि
दोनों
उम्रदरा़ज होकर
किनारे
लग जाते हैं
और
एक दिन
टूटकर
बिखर जाते हैं...।
वाह, जिंदगी की हकीकत बयां करती खूबसूरत कविता,सच ऐसी ही तो होती है,जिंदगी ।
ReplyDeleteआभारी हूं आपका जिज्ञासा जी...।
Deleteबहुत सुंदर सृजन। 🌼
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने।♥️
आभारी हूं आपका शिवम जी...।
Deleteक्या खूब वाह..अति सूक्ष्म विश्लेषण सर।
ReplyDeleteसंपूर्ण जीवन-यात्रा का सार लिख दिया आपने
ज़िंदगी जहाज होती है
जिसकी रहस्यमयी यात्राओं की
गर्भ में छुपा है
सृष्टि का विस्तार।
प्रणाम
सादर।
आभारी हूं आपका मीना जी। मेरी रचना को मान देने के लिए साधुवाद।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका श्वेता जी...।
ReplyDeleteआपने जो कहा ठीक कहा शर्मा जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका
Deleteसुंदर तुलना की है | सुंदर एहसास से गुंधी रचना |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका अनुपमा जी।
Deleteयथार्थ
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सुमन जी।
Deleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteएकदम सटीक तुलना की है आपने सर सरहनीय रचना!
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