जब
खुशी से
सराबोर
हम दोबारा बुनेंगे
जीवन।
ये
भय की अंधियारी
बीत जाएगी।
सुबह
खुलकर
मिलेंगे
गले
और
लगाएंगे मरहम
अपनों के दर्द पर।
बेहद कठिन सफर है
आंखों में
अपनों के असमय चले जाने का
दर्द
कहीँ कोरों पर
नमक के बीच
आ ठहरा है।
आएगी सुबह
जब
थमी सी जिंदगी
मुस्कुरा उठेगी...।
ReplyDeleteलाख दुःखों का पहाड़ गिरे लेकिन जीवन में आस का महीन कोना बाकी हो तो जीना दूभर नहीं होता, फिर से एक नई सुबह होती है
बहुत सुन्दर
आपकी गहन प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूं कविता जी।
Deleteकाश ! वो समय जल्दी आये ।
ReplyDeleteदर्द
कहीँ कोरों पर
नमक के बीच
आ ठहरा है।
बेहतरीन पंक्तियाँ ।
आपकी गहन प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूं संगीता जी।
Deleteदर्द
ReplyDeleteकहीँ कोरों पर
नमक के बीच
आ ठहरा है।
आएगी सुबह
जब
थमी सी जिंदगी
मुस्कुरा उठेगी.
निराशा से आशा की ओर उन्मुख करतामर्मस्पर्शी सृजन ।
आपकी गहन प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूं मीना जी।
Deleteसुन्दर मर्मस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteआभारी हूं आपका सान्याल जी।
Deleteवो सुबह जरूर आएगी
ReplyDeleteआभारी हूं आपका गगन शर्मा जी।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteआभारी हूं आपका ओंकार जी।
Deleteदर्द
ReplyDeleteकहीँ कोरों पर
नमक के बीच
आ ठहरा है।
बहुत सुंदर रचना...
आभारी हूं आपका मैम।
Deleteआभारी हूं आपका अनीता जी। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।
ReplyDeleteबहुत बढियां सृजन
ReplyDeleteआभार आपका भारती जी...
Deleteदर्द और दर्द के गर्भ में डूबे मन को उबारती सुंदर रचना।
ReplyDeleteआभार आपका जिज्ञासा जी...
Deleteसमय को ऐसे ही लम्हों का इंतज़ार है ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
आभार आपका दिगम्बर नासवा जी...
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