दूर
कहीं कोई
जीवन
अकेला खड़ा है।
जंगल
अब विचारों में
समाकर
किताब के पन्नों
पर
गहरे चटख रंगों
में
नज़र आता है।
अब
जंगल और
किताब के पन्नों
के बीच
आदमियों की भीड़ है।
भीड़ किताबों
को सिर पर उठाए
विरासत की ओर
कूच
कर रही है।
किताब के पन्नों का
जंगल
तप रहा है
उसके रंग
पसीजकर
आदमी के चेहरे पर
उकेर रहे हैं
कटी और गूंगी सभ्यता।
जंगल और किताबी जंगल
के बीच
कहीं कोई आदमी
है
जिसका चेहरा कुल्हाड़ी
की जिद्दी मूठ
हो गया है।
कुल्हाड़ी
जंगल
और
आदमी के बीच
अब कहीं कोई
भरोसा
सूखकर किताब के
पन्नों वाले जंगल के
आखिरी पृष्ठ
की निचली
पंक्तियों की बस्ती में
सूखे की अंतहीन
बाढ़ में समा गया है।
अब जंगल
घूमने की नहीं
पढ़ने और पन्नों में
देखने
की एक वस्तु है...।
बहुत आभार आपका मीना जी...।
ReplyDeleteजंगल और शहर के बीच की दूरी घटती जा रही है, इसलिए तेंदुएँ नज़र आने लगे हैं शहरों में आजकल, प्रभावशाली लेखन !
ReplyDeleteबहुत आभार आपका
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ सितंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी बहुत आभार श्वेता जी...।
ReplyDelete–सवाल है जिम्मेदार कौन
ReplyDelete–जबाब में हम आप मौन
सुन्दर लेखन
जी बहुत आभार विभा रानी श्रीवास्तव जी...।
Deleteजिस रफ्तार से जंगल खत्म हो रहे हैं तो पन्नों पर ही जंगल बचेंगे । सार्थक लेखन।
ReplyDeleteजी बहुत आभार संगीता जी
Deleteसादर नमस्कार सर।
ReplyDeleteमन पसीज गया पढ़कर कल्पना मात्र से ही....
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
सादर
जी बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी।
ReplyDeleteअत्यन्त चिंतनीय विषय । स्तब्ध करती हुई ...
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका
Deleteआपका वैचारिकी मंथन मनन योग्य है सर।
ReplyDeleteप्रणाम
सादर।
जी बहुत बहुत आभार आपका
Deleteजंगल अब विचारों में समाकर किताब के पन्नों पर
ReplyDeleteगहरे चटख रंगों में नज़र आता है।अब जंगल और
किताब के पन्नों के बीच आदमियों की भीड़ है।
जंगल को मिटाकर अब आदमी किताबों में जंगल लिख रहा है
बहुत ही चिंतनपरक लाजवाब सृजन।
बहुत बहुत आभारी हूं आपका सुधा जी।
Deleteमहत्वपूर्ण सवाल उठाती बहुत ही प्रभावशाली रचना!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका मनीषा जी।
Deleteऐसा नहीं होना चाहिए था पर हो गया है (कम-से-कम भारत में)। क्यों हुआ, यह विशद अध्ययन एवं सत्यनिष्ठ विमर्श का विषय है। काश इस स्थिति को उलटाया जा सके! काश मनुष्यों का बहुमत तथा अधिकारयुक्त पदों पर बैठकर महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले लोग इसे समझकर (अब भी) इस दिशा में उचित कार्य करें एवं अनुचित कार्यों से बचें!
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