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पुरवाई

Wednesday, October 6, 2021

प्रेम ऐसा ही होता है


 

प्रेम

ऐसा ही होता है

अंदर से

बेहद शांत।

जैसे कोई

रंगों के महोत्सव

के 

बीच

किसी अधखिले फूल की

प्रार्थना।

23 comments:

  1. बहुत बढ़िया संदीप जी। प्रेम के जितने रुप उतनी परिभाषाएं। सुन्दर मनोरम, प्रेमाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रेणु जी...आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 07 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी।

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  3. बहुत सुंदर और सच!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका मनीषा जी।

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  4. सच है..किसी अधखिले फूलों की प्रार्थना..
    बहुत सुंदर क्षणिका।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी।

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  5. सुंदर भावपूर्ण सृजन

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी।

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  6. वाह!सुंदर अभिव्यक्ति ।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।

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  7. कविता नहीं, एक फूल-सा अहसास.
    अभिनन्दन !

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका सरिता जी।

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  9. बहुत सुंदर सृजन आदरणीय ।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका दीपक जी।

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  10. एहसासों की अति सुंदर अभिव्यक्ति ।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।

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  11. सुंदर, सार्थक रचना !........
    ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका

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  12. जी बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी।

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