पेज

पुरवाई

रविवार, 28 नवंबर 2021

नदी का मौन, आदमियत की मृत्यु है


आओ
नदी के किनारों तक
टहल आते हैं
अरसा हो गया
सुने हुए
नदी और किनारों के बीच
बातचीत को।
आओ पूछ आते हैं
किनारों से नदी की तासीर
और
नदी से
किनारों का रिश्ता।
आओ देख आते हैं
नदी में
बहते सख्त
पत्थरों से उभरे जख्मों को
जिन्हें नदी
कड़वाहट के नमक से बचाती रहती है
और
अक्सर छिपाती रहती है।
आओ छूकर देख आएं
नदी के पानी को
उसकी काया को
उसकी तासीर को
और
जांच लें
हम
पूरी तरह बे-अहसास तो नहीं रहे।
आओ बुन आते हैं
नदी और किनारों के बीच
गहरी होती दरारों को
जहां
टूटन से टूट सकता है
रिश्ता
और
भरोसा।
आओ नदी तक हो आएं
परख लें
नदी, कल कल कर पछियों से बात करती है
या
केवल
मौन बहती है
पत्तों और कटे वृक्षों के सूखे जिस्म लेकर
क्योंकि
बात करने और मौन हो जाने में
उसकी कसक होती है
जो चीरती है उसे गहरे तक
और मौन होती नदी
कभी भी सभ्यता को गढ़ने की क्षमता नहीं रखती
क्यांकि नदी का मौन
आदमियत की मृत्यु है..


 

28 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 30 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आभार आपका यशोदा जी। मेरी रचना को नेह प्रदान करने के लिए।

      हटाएं
  2. नदी का मौन रुदन उसकी संतानों को कैसे न रुला जायेगा, मार्मिक रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. जी बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
    (30-11-21) को नदी का मौन, आदमियत की मृत्यु है" ( चर्चा अंक4264)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।

      हटाएं
  5. बहुत बहुत ही सुंदर सृजन।
    कोई पूछे नदी से कैसी है वो?
    हृदयस्पर्शी सृजन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!भावपूर्ण ,बेहतरीन सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  8. नदी किनारोंसे दूर नहीं हो सकती लेकिन फिर भी कभी वेगवती हो कर उन किनारों को तोड़ ज़रूर सकती है । नदी का मौन सच ही आदमियत की मौत ही है तब किनारे बेबस हो कर नदी की खामोशी देखते हैं ।
    झकझोर देने वाली रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  10. संवेदशीलता से परिपूर्ण ...

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  12. सही कहा अहि ... हमेशा से संस्कृति नदियों के किनारे ही जीवित रही है ... सभ्यता भी ऐसे ही जीवित रही है ... ये क्रम आने वाले समय में भी ऐसा हो रहने वाला है ... गहरी, सार्थक रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  13. बात करने और मौन हो जाने में
    उसकी कसक होती है
    जो चीरती है उसे गहरे तक
    और मौन होती नदी
    कभी भी सभ्यता को गढ़ने की क्षमता नहीं रखती
    क्यांकि नदी का मौन
    आदमियत की मृत्यु है..
    गहन अर्थ समेटे बहुत ही सारगर्भित लाजवाब सृजन
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  14. शीर्षक के अनुरूप सम्पूर्ण कविता बहुत मर्मस्पर्शी है। हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं