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पुरवाई

Tuesday, November 30, 2021

जिस्म से नमक खरोंच कर


 

ये 

दुनिया 

एक खारी नदी है

और हम

नमक पर 

नाव खे रहे हैं।

नदी का नमक हो जाना

आदमी के खारेपन

का शीर्ष है। 

नदी और आदमी 

जल्द

अलग हो जाएंगे

नदी 

नमक का जंगल होकर

रसातल में समा जाएगी

और 

आदमी नाव में

नदी के जिस्म से 

नमक खरोंच कर

ठहाके लगाएगा..।

नमक 

नदी

और 

आदमी

आखिर में 

एक हो जाएंगे।

तब 

नाव होगी

पतवार पर

कोई

नया पंछी बैठेगा

जो 

दूसरी दुनिया से आकर

खोजेगा 

नदी

आदमी

और जीवन।

क्या हमें

नदी को

नमक होने से बचाना चाहिए

और 

खरोंचे जाने चाहिए

अपने पर जमे नमक के जिद्दी टीले...।

9 comments:

  1. सारगर्भित !
    भयावता को आगाह करती विनाश का संकेत देती गहन रचना।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०२ -१२ -२०२१) को
    'हमारी हिन्दी'(चर्चा अंक-४२६६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आभार आपका..। मेरी रचना को मान देने के लिए...।

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  3. बहुत ही शानदार सृजन

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  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना आदरणीय
    कभी मेरे ब्लाॅग पर भी पधारिए,सादर

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  5. आदमी का खारापन कैसे मीठेपन में बदले यही तो करना है

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