उम्र के कुछ पन्ने
बहुत सख्त होकर
सूखे से
दोपहर के दिनों
की गवाही हैं..।
सूखे पन्नों पर
अनुभव का सच है
जो उभरा है अब भी
उन्हीं सूखे पन्नों
के खुरदुरे शरीर पर।
पन्ने का सूख जाना
समय का पीलापन है
शब्दों का नहीं।
समय
सिखा रहा है
अपनी खुरदुरी पीठ
दिखाते हुए
खरोंच के निशान
जो
दिखाई नहीं देते
दर्द देते हैं।
उम्र का हरापन
भी जिंदा है
शब्दों
की मात्राओं के शीर्ष पर
अभी पीला नहीं हुआ है।
हरे से पीले हो जाने में
कुछ नहीं बदलता
बस
एक उम्र सख्त होना सिखा जाती है।
पीले पन्नों की किताब में
अभी कुछ श्वेत हैं
अनुभव का
खिलखिलाता हरापन
लिखना चाहता हूँ
उन पर।
देख रहा हूँ
पीले पन्नों में
अनुभव के कुछ शब्द
घूर रहे हैं
वे
अब भी सहज नहीं हैं।
(फोटोग्राफ /गजेन्द्र पाल सिंह जी...। आभार)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी बहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी।
ReplyDeleteसमय बहुत कुछ सिखा जाता है।
ReplyDeleteसराहनीय सृजन।
सादर
आभार आपका अनीता जी..।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार
(6-12-21) को
तुमसे ही मेरा घर-घर है" (चर्चा अंक4270)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
आभार आपका कामिनी जी...।।
Deleteऔर क्या यह सच नहीं कि सख़्त होना आदमी के लिए घातक है, खुद के लिए भी और उसके आसपास के लोगों के लिए भी
ReplyDeleteएक उम्र सख्त होना सिखा जाती है।
ReplyDeleteपीले पन्नों की किताब में
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बेहद गहन भाव लिए ज़िंदगी का फलसफ़ा लिखा है आपने सर।
बेहतरीन रचना।
सादर।
वाह!
ReplyDeleteकितनी सुंदर और कितने गहरे भाव व्यक्त करती कितनी शानदार रचना!👍
मैं भी एक दिन ऐसा ही लिखना चाहती हूँ.. .
पीले पड़े .. पुराने .. भुरभुरे-से पन्ने और शब्दों का जस का तस रहना, जैसे बिम्बों से क्रमशः मानव-शरीर और मानव-मन का अनूठा दर्पण .. शायद ...
ReplyDeleteबहुत गहन विश्लेषण, ज़िंदगी के अनुभवी क्षणों और बढ़ती वय का पीलापन वाह!!
ReplyDeleteअप्रतिम लेखन।