भूख का रंग नहीं होता
आकार भी नहीं
चेहरा होता है
जली हुई रोटी सा
झुलसा और गुस्सैल चेहरा।
फटे जीवन में
जली रोटी की महक
बच्चे की ललचाई और गहरे धंसी आंखों में
जीवन की उम्मीद है।
भूख का एक सिरा
घर की चारपाई से बंधा होता है
और
दूसरा सिरा
बेकारी की फटी छत की तिरपाल से।
भूख की पीठ पर
बेबसी के निशान
उम्र के साथ गहरे होते जाते हैं।
कंदील में रोशनी में
झुलसी रोटी और बच्चे
एक जैसे लगते हैं।
रोटी की स्याह तस्वीर
चेहरे पर हर पल नजर आती है।
भूख का कद
पेट से होकर
उम्र के अंतिम सिरे तक जाता है।
भूख एक उम्मीद पालती है
और
अगले ही पल
बांझ हो जाती है।
भूख पर शोर
एक आदत है, चीख है, सच है।
भूख पर नीति
केवल
चेहरे बनाती है।
चेहरे पर भूख केवल एक सच है
जिसमें तलाशी जाती है भूख
और मिटाई जाती है
भूख।
भूख पर दस्तावेज
अक्सर कोरे नज़र आते हैं
क्योंकि भूख शब्दों में
लिखी नहीं जा सकी अब तक।
भूख
रोती हुई मां के चेहरे पर
चिंता की गहरी झाई है
जिसे
पहले समय
फिर समाज
और आखिर में
बच्चे भी कर देते हैं
अनदेखा।
भूख केवल
पल पल मौत की ओर बढ़ता
हलफनामा है।।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२४-१२ -२०२१) को
'अहंकार की हार'(चर्चा अंक -४२८८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत आभार आपका अनीता जी...।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर
बहुत आभार आपका दिव्या जी...।
Deleteजी बहुत आभार आपका श्वेता जी...।
ReplyDeleteगहरे भावों को व्यक्त करती बहुत ही मार्मिक रचना..!
ReplyDeleteरोती हुई मां के चेहरे पर
ReplyDeleteचिंता की गहरी झाई है
जिसे
पहले समय
फिर समाज
और आखिर में
बच्चे भी कर देते हैं
अनदेखा।
भूख केवल
पल पल मौत की ओर बढ़ता
हलफनामा है।
भूखवह भी हर जरूरत की ...अपने बच्चे के अरमानों के पूरा होने...उम्र भर और गहराती जाती हैं ये झाइयां माँ के चेहरे पर ...क्यों कि माँ की भूख हमेशा अनदेखी की जाती है...
लाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteसादर
हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteभूख का न रंग होता है न आकार ,यहाँ तक कि मज़हब भी नहीं होता । मार्मिक दृश्य पैदा किया है आपके शब्दों ने ।
ReplyDeleteसत्य को करीब से दर्शाती हुई आपकी रचना
ReplyDeleteबहुत ही सारगर्भित
भूख का कोई चहरा नहीं होता सिर्फ भूख होती है ...
ReplyDeleteयथार्थ के धरातल पर लिखी रचना ...
मार्मिक रचना
ReplyDelete