परों से
उड़ती है तितली
तब जाकर
पाती है
फूलों का प्रेम
और
जीवन का रस।
धूप सहती है
नुकीले कांटे भी
रोकते हैं राह
बचती
खिलखिलाती
फूलों के मन को
छू ही लेती है
क्योंकि भरोसा अपनी पीठ पर
रोज रखती है
उड़ने से पहले तितली।
आसमान
छूना
और आसमान पर बने रहना
ऐसी कोई ख्वाहिश
नहीं रखती
ये तो
रंगरसिया है
रंगों में जीती
रंगों से जीवन को सीती
यूं ही भरती है कई
उड़ान।
कभी दूसरी तितली का नहीं करती
प्रतिकार
क्योंकि
जानती है
ये बागान
उनकी उड़ान
और
रंगों से उत्साह पाता है
जीवन पाता है।
सीख लें..
कि
शिकायत नहीं करती
परों के टूटने पर
खामोशी से तिनकों पर
सिर रख सी लेती है
परों के घाव..।।
सीख लें
मनबसिया से
खुशबू सहेजना
और उसे बांटना सभी के बीच
खिलखिलाते हुए....।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (03-01-2022 ) को 'नेह-नीर से सिंचित कर लो,आयेगी बहार गुलशन में' (चर्चा अंक 4298) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत ही सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteनववर्ष की अनेकानेक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर
तितली से कितना कुछ सीख सकते हैं हम, अति ही सुंदर रचना!
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति !
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हल्की फुल्की तितली भी हमें जीवन के सुंदरतम पाठ पढ़ा देती है .. बहुत सुंदर, सराहनीय रचना ।
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