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पुरवाई

Monday, September 19, 2022

सफर में


सफर 
में 
अक्सर साथ होते हैं
अपना शहर
पुरानी गलियों में बसे 
बचपन वाले खोमचे।
दोस्तों 
के कुछ सुने सुनाए 
मीठे किस्से। 
घंटों उलझे से हम।
साथ होते हैं
कुछ बुढ़े हो चले दोस्तों के चेहरे
कुछ 
उनकी बातों में 
उम्र का खारापन।
साथ होते हैं
थकन की पीठ पर 
शब्दों के अर्थ।
साथ होते हैं
रेस में भागते पैर
और उनकी सूजन 
आंखों में थकन
और सुबह का सूरज। 
लौटने की खुशी
जीवनसाथी का इंतज़ार
बच्चों का नेह संसार
और 
उम्र के केलेंडर पर 
बीते हुए दिन के साक्ष्य।
साथ होता है देर तक 
अपने शहर का आसमां
और भुरभुरी जमीन। 
साथ होते हैं हम 
और 
वक्त।


 

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