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पुरवाई

Friday, November 4, 2022

हम बदल रहे हैं


रात भर ठंड में

कराहता रहा एक शख्स

दरवाजे पर उसके

दस्तक भी दी

और

कराह भी गूंजी।

नहीं टूटी नींद

और 

न ही खोला द्वार।

सुबह

वह शख्स मर गया

दरवाजा खुला 

उस पर चादर ओढ़ा दी गई

और 

चार लोग सहानुभूति में एकत्र किए गए

करवा दिया गया उसका अंतिम संस्कार।

लोग 

उसे बड़ा समाजसेवी कह

थपथपा रहे थे पीठ

वह विनम्र होकर भीड़ के सामने रोनी सूरत लिए

कोस रहा था उस रात की नींद को।

मुस्कुराता वही व्यक्ति 

दोबारा घर में दाखिल हुआ

और

सोफे पर पसरकर 

हाथ में गिलास लेकर 

पलटाने लगा 

मैग्जीन के नग्नता से भरे पन्ने

ठहाके लगाकर हंसने लगा

यह कहते हुए 

हां 

कल रात नींद बहुत मीठी थी

और 

आज का दिन यादगार। 


14 comments:

  1. जी बहुत आभार यशोदा जी...।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6-11-22} को "करलो अच्छे काम"(चर्चा अंक-4604) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. आभार आपका कामिनी जी।

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. समय की यही विडंबना है।
    मार्मिक सृजन।

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  5. संदीप जी, सुन्दर सृजन! साधुवाद!

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  6. मर्म स्पर्शी समसामयिक सार्थक रचना

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  7. बहुत खूबसूरत रचना

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  8. साहब, आपने तो आँखों में आँसू ला दिया। सच में दिल को छू गया।

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