रात भर ठंड में
कराहता रहा एक शख्स
दरवाजे पर उसके
दस्तक भी दी
और
कराह भी गूंजी।
नहीं टूटी नींद
और
न ही खोला द्वार।
सुबह
वह शख्स मर गया
दरवाजा खुला
उस पर चादर ओढ़ा दी गई
और
चार लोग सहानुभूति में एकत्र किए गए
करवा दिया गया उसका अंतिम संस्कार।
लोग
उसे बड़ा समाजसेवी कह
थपथपा रहे थे पीठ
वह विनम्र होकर भीड़ के सामने रोनी सूरत लिए
कोस रहा था उस रात की नींद को।
मुस्कुराता वही व्यक्ति
दोबारा घर में दाखिल हुआ
और
सोफे पर पसरकर
हाथ में गिलास लेकर
पलटाने लगा
मैग्जीन के नग्नता से भरे पन्ने
ठहाके लगाकर हंसने लगा
यह कहते हुए
हां
कल रात नींद बहुत मीठी थी
और
आज का दिन यादगार।
जी बहुत आभार यशोदा जी...।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6-11-22} को "करलो अच्छे काम"(चर्चा अंक-4604) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
आभार आपका कामिनी जी।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसमय की यही विडंबना है।
ReplyDeleteमार्मिक सृजन।
आभार आपका
Deleteसंदीप जी, सुन्दर सृजन! साधुवाद!
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteमर्म स्पर्शी समसामयिक सार्थक रचना
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteसाहब, आपने तो आँखों में आँसू ला दिया। सच में दिल को छू गया।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका।
Delete