तुम्हें
पलाश पसंद है
हां पलाश
जिसके
नीचे हमने भरे थे
सपनों में रंग।
पलाश
हमारे जीवन की
किताब का
आवरण है।
पलाश पर
तुमने
पहली कविता लिखी थी
उसके रंग की
स्याही में भिगोकर
शब्द
अब भी उभरे हैं
तुम्हारे मन
और
मेरे विचारों पर।
पलाश
पर अब भी तुम
लिखना चाहती हो जीवन
और
हमारे रिश्ते को।
पलाश
सच
कितना सच है
ये
तुममे और मुझमें
समान महकता है।
पलाश
उम्र के दस्तावेज पर
अंकित है
और महकता रहेगा।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका यशोदा जी...।
Deleteबहुत आभार आदरणीय...।
ReplyDeleteपलाश सी खिलती रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
जी बहुत आभार आपका...।
Deleteवाह!!
ReplyDelete'पलाश
हमारे जीवन की
किताब का
आवरण है।
पलाश पर
तुमने
पहली कविता लिखी थी
उसके रंग की
स्याही में भिगोकर
शब्द
अब भी उभरे हैं
तुम्हारे मन
और
मेरे विचारों पर।'
क्या बात है सर! बहुत खूब! सुंदर कविता
अरविंद जी बहुत आभार..।
Deleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteअभिलाषा जी बहुत आभार...
Deleteप्रकृति के सौंदर्य को निखारती सुन्दर कविता, मुग्ध करती है, नमन सह।
ReplyDeleteशांतनु जी बहुत आभार...
Deleteसुन्दर रचना....
ReplyDeleteआभार विकास जी...
Deleteपलाश के फूलों सी महकती मनमोहक सृजन
ReplyDeleteआभार कामिनी जी...।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार ओंकार जी...
Deleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
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