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Saturday, July 3, 2021

उस रेत पर बिटिया और मैं











यूं रेत पर 

बैठा था 

अकेला

कुछ विचार 

थे, 

कुछ कंकर 

उस रेत पर। 

सजाता चला गया

रेत पर कंकर 

देखा तो बेटी तैयार हो गई

उसकी छवि 

पूरी होते ही वो मुझसे बतियाने लगी

मुस्कुराई, 

कभी नजरें इधर-उधर घुमाई...। 

ये क्या 

तभी बारिश भी आ गई...

वो रेत पर बेटी भीगने लगी

मेरा साहस नहीं हुआ 

कि 

उसे वापस कंकर बना दूं। 

वो भीगती रही 

मैं देखता रहा...

भीगता रहा...। 

न मै उठकर गया और न ही वो। 

हम दोबारा बतियाने लगे

बारिश में बहुत सारा मन

भीग चुका था

बेटी 

भीगती हुई 

ठिठुरती है बिना आसरे।

मैंने उसके ठीक ऊपर

बना दिया

दोनों हथेलियों से  एक बड़ा सा छाता।

अब बेटी खिलखिला रही थी

मुझे देखते हुए।


 

39 comments:

  1. भावपूर्ण कल्पना। बेटियों को यूँ आसरे का बहुत सहारा होता है , वैसे आज कल की बेटियाँ सहारा देने में सक्षम हैं ।

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    Replies
    1. संगीता जी बहुत बहुत आभार आपका।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (5-07-2021 ) को 'कुछ है भी कुछ के लिये कुछ के लिये कुछ कुछ नहीं है'(चर्चा अंक- 4116) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    Replies
    1. आदरणीय रवींद्र जी मैं आपका आभारी हूं जो आपने मेरी रचना को सम्मान दिया।

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  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 5 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    Replies
    1. संगीता जी बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete
  4. बेटी

    भीगती हुई

    ठिठुरती है बिना आसरे

    मैंने उसके ठीक ऊपर

    बना दिया

    दोनों हथेलियों से एक बड़ा सा छाता।

    अब बेटी खिलखिला रही थी

    मुझे देखते हुए..बहुत ही सुंदर सृजन पिता का आशीर्वाद अनमोल है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. अनीता जी बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete
  5. यूं रेत पर
    बैठा था
    अकेला
    कुछ विचार
    थे,
    कुछ कंकर
    उस रेत पर।
    सजाता चला गया
    रेत पर कंकर
    देखा तो बेटी तैयार हो गई
    ऐसी ही होती हैं बेटियां.?
    सादर..

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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी...।

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  6. पिता सदैव चाहते हैं अपनी बेटियों के लिए सुरक्षित छाता बनना।
    बेहद भावपूर्ण सृजन सर।
    प्रणाम
    सादर।

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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत आभार श्वेता जी।

      Delete
  7. वाह,सुंदर भावों का अनूठा सृजन। बेटी हो,प्रकृति हो या पशु पक्षी,हमारे समाज में सभी को संरक्षित करने की आवश्यकता है।और आप सबके लिए काम कर रहे हैं,बहुत शुभकामना।

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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी।

      Delete
  8. सारगर्भित अभिव्यक्ति, सुन्दर भाव!

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    1. आपका बहुत बहुत आभार अनुपमा जी।

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  9. भाव पूर्ण सृजन एक पिता के ह्रदय के उद्गार को बखूबी दर्शाया है अति सुन्दर

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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत आभार उर्मिला जी।

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  10. वाह!सुंदर भावों से सजा सृजन ।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार शुभा जी।

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  11. बहुत सुंदर भावभीनी अभिव्यक्ति

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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय गगन शर्मा जी।

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  12. भावपूर्ण सृजन।
    बधाई

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    1. आपका बहुत बहुत आभार पम्मी जी।

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  13. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत बहुत आभारी हूं आपका अनुराधा जी।

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  14. वात्सल्य भाव के साथ गहन स्नेह में डूबी मासूम सी रचना।उत्कृष्ट सृजन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभारी हूं आपका मीना जी।

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  15. आजकल की बेटियों को ऐसे ही आसरे की जरूरत हैं रेतीले मरूस्थलों से तपन भरे माहौल में उपजी ये बेटियाँ जब जिन्दगी के तूफानों और बारिशों का डटकर सामना कर रही हों तब पिता उन्हें समेटकर बारिश और तूफानों से बचाने के बजाय साथ देकर अपनी छत्र छाँव में डपकर मुटाबला करने की प्रेरणा दें...।
    बहुत ही संवेदनशील भावपूर्ण सृजन।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभारी हूं आपका सुधा जी।

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  16. पिता के मन के भावों का सुंदर चित्रण,बेटियाँ खुद का आस्तित्व तलाशने में है ऐसे में उनका साथ देना हर पिता का धर्म है ,हृदयस्पर्शी सृजन ,सादर नमन संदीप जी

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    1. बहुत बहुत आभारी हूं आपका कामिनी जी।

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  17. बेहद भावपूर्ण रचना !

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    1. बहुत बहुत आभारी हूं आपका उषा किरण जी।

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  18. बहुत सुंदर संदीप जी , बेटी और पिता का बधन अटूट होता है |सच कहूं तो बेटियाँ माँ से ज्यादा पिता का स्नेह पाती हैं और पिता से बढ़कर कोई सुरक्षा कवच किसी बेटी के लिए नहीं हो सकता | एक पिता के चेतन और अवचेतन में बेटी किस तरह बसी होती है , आपके जीवंत शब्द चित्र से पता चलता है |कंकड़ से बेटी की छवि की कल्पना बहुत भावुक कर देने वाली है | छवि को हाथों से ढककर बेटी को सुरक्षा देना एक पिता के असीम आत्मीय भाव को दर्शाती है | इतनी प्यारी रचना के लिए ढेरों बधाईयाँ |

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभारी हूं आपका रेणु जी। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा बेहतर करने का साहस बंधाती है। अबकी आप बहुत समय बाद मेरे ब्लॉग पर आईं हैं मेरी रचनाएं आपकी समीक्षा का हमेशा इंतजार करती हैं।

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    2. आपके ब्लॉग पर हर रचना पढ़ती हूँ संदीप जी बस टिप्पणी अक्सर चाहकर भी कर नहीं पाती हूँ | आप बहुत बढिया लिख रहे हैं |

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  19. आदरणीय सर , पिता -पुत्री के अनमोल स्नेह को दर्शाती और बेटियों की रक्षा करने की प्रेरणा देती सुंदर भावपूर्ण रचना । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।

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