यूं रेत पर
बैठा था
अकेला
कुछ विचार
थे,
कुछ कंकर
उस रेत पर।
सजाता चला गया
रेत पर कंकर
देखा तो बेटी तैयार हो गई
उसकी छवि
पूरी होते ही वो मुझसे बतियाने लगी
मुस्कुराई,
कभी नजरें इधर-उधर घुमाई...।
ये क्या
तभी बारिश भी आ गई...
वो रेत पर बेटी भीगने लगी
मेरा साहस नहीं हुआ
कि
उसे वापस कंकर बना दूं।
वो भीगती रही
मैं देखता रहा...
भीगता रहा...।
न मै उठकर गया और न ही वो।
हम दोबारा बतियाने लगे
बारिश में बहुत सारा मन
भीग चुका था
बेटी
भीगती हुई
ठिठुरती है बिना आसरे।
मैंने उसके ठीक ऊपर
बना दिया
दोनों हथेलियों से एक बड़ा सा छाता।
अब बेटी खिलखिला रही थी
मुझे देखते हुए।
भावपूर्ण कल्पना। बेटियों को यूँ आसरे का बहुत सहारा होता है , वैसे आज कल की बेटियाँ सहारा देने में सक्षम हैं ।
ReplyDeleteसंगीता जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (5-07-2021 ) को 'कुछ है भी कुछ के लिये कुछ के लिये कुछ कुछ नहीं है'(चर्चा अंक- 4116) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आदरणीय रवींद्र जी मैं आपका आभारी हूं जो आपने मेरी रचना को सम्मान दिया।
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 5 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
संगीता जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteबेटी
ReplyDeleteभीगती हुई
ठिठुरती है बिना आसरे
मैंने उसके ठीक ऊपर
बना दिया
दोनों हथेलियों से एक बड़ा सा छाता।
अब बेटी खिलखिला रही थी
मुझे देखते हुए..बहुत ही सुंदर सृजन पिता का आशीर्वाद अनमोल है।
सादर
अनीता जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteयूं रेत पर
ReplyDeleteबैठा था
अकेला
कुछ विचार
थे,
कुछ कंकर
उस रेत पर।
सजाता चला गया
रेत पर कंकर
देखा तो बेटी तैयार हो गई
ऐसी ही होती हैं बेटियां.?
सादर..
आपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी...।
Deleteपिता सदैव चाहते हैं अपनी बेटियों के लिए सुरक्षित छाता बनना।
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण सृजन सर।
प्रणाम
सादर।
आपका बहुत बहुत आभार श्वेता जी।
Deleteवाह,सुंदर भावों का अनूठा सृजन। बेटी हो,प्रकृति हो या पशु पक्षी,हमारे समाज में सभी को संरक्षित करने की आवश्यकता है।और आप सबके लिए काम कर रहे हैं,बहुत शुभकामना।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी।
Deleteसारगर्भित अभिव्यक्ति, सुन्दर भाव!
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार अनुपमा जी।
Deleteभाव पूर्ण सृजन एक पिता के ह्रदय के उद्गार को बखूबी दर्शाया है अति सुन्दर
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार उर्मिला जी।
Deleteवाह!सुंदर भावों से सजा सृजन ।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार शुभा जी।
Deleteबहुत सुंदर भावभीनी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय गगन शर्मा जी।
Deleteभावपूर्ण सृजन।
ReplyDeleteबधाई
आपका बहुत बहुत आभार पम्मी जी।
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका अनुराधा जी।
Deleteवात्सल्य भाव के साथ गहन स्नेह में डूबी मासूम सी रचना।उत्कृष्ट सृजन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका मीना जी।
Deleteआजकल की बेटियों को ऐसे ही आसरे की जरूरत हैं रेतीले मरूस्थलों से तपन भरे माहौल में उपजी ये बेटियाँ जब जिन्दगी के तूफानों और बारिशों का डटकर सामना कर रही हों तब पिता उन्हें समेटकर बारिश और तूफानों से बचाने के बजाय साथ देकर अपनी छत्र छाँव में डपकर मुटाबला करने की प्रेरणा दें...।
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील भावपूर्ण सृजन।
बहुत बहुत आभारी हूं आपका सुधा जी।
Deleteपिता के मन के भावों का सुंदर चित्रण,बेटियाँ खुद का आस्तित्व तलाशने में है ऐसे में उनका साथ देना हर पिता का धर्म है ,हृदयस्पर्शी सृजन ,सादर नमन संदीप जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका कामिनी जी।
Deleteबेहद भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका उषा किरण जी।
Deleteबहुत सुंदर संदीप जी , बेटी और पिता का बधन अटूट होता है |सच कहूं तो बेटियाँ माँ से ज्यादा पिता का स्नेह पाती हैं और पिता से बढ़कर कोई सुरक्षा कवच किसी बेटी के लिए नहीं हो सकता | एक पिता के चेतन और अवचेतन में बेटी किस तरह बसी होती है , आपके जीवंत शब्द चित्र से पता चलता है |कंकड़ से बेटी की छवि की कल्पना बहुत भावुक कर देने वाली है | छवि को हाथों से ढककर बेटी को सुरक्षा देना एक पिता के असीम आत्मीय भाव को दर्शाती है | इतनी प्यारी रचना के लिए ढेरों बधाईयाँ |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूं आपका रेणु जी। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा बेहतर करने का साहस बंधाती है। अबकी आप बहुत समय बाद मेरे ब्लॉग पर आईं हैं मेरी रचनाएं आपकी समीक्षा का हमेशा इंतजार करती हैं।
Deleteआपके ब्लॉग पर हर रचना पढ़ती हूँ संदीप जी बस टिप्पणी अक्सर चाहकर भी कर नहीं पाती हूँ | आप बहुत बढिया लिख रहे हैं |
Deleteआदरणीय सर , पिता -पुत्री के अनमोल स्नेह को दर्शाती और बेटियों की रक्षा करने की प्रेरणा देती सुंदर भावपूर्ण रचना । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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