उम्रदराज़ पिता ऐसे ही होते हैं
कांपते हाथों
फेर ही देते हैं
हारते बेटे के सिर पर हाथ।
धुंधली छवियों के बीच
देख ही लेते हैं
बच्चों के माथों पर चिंता की लकीरें
हां, उम्रदराज़ पिता ऐसे ही होते हैं।
भागती हुई जिंदगी से कदमताल करते हुए
केवल रात को ही थकते हैं
और
सुबह सबसे पहले उठ जाते हैं
उम्रदराज़ पिता।
घर में खुशियों को बोते हैं
विचारों की उधडन की करते हैं तुरपाई
विवादों को टालते हैं
और
अधिकांश गलतियां ओढ़ लेते हैं खुद ही
हां, ऐसे ही होते हैं उम्रदराज़ पिता।
सबसे आखिर में पढ़ते हैं अखबार
और
पसंदीदा खबर सुनाने
पूरा दिन करते हैं इंतजार
पत्नी के सुस्ताने वाली घड़ी का।
पहले हमेशा गुमसुम रहने वाले पिता
अब
जरुरी मौकों पर मुस्कारते हैं।
किसी भी आहट से पहले
जाग जाते हैं
पूरा दिन घर को मंथते हैं
अपनों को जीते हैं
जिंदगी के नये पुराने दिनों को यादों में सीते हैं
हां ऐसे ही तो होते हैं उम्रदराज़ पिता।
अक्सर खाली जेब बाजार चले जाते हैं
उम्मीदें लेकर
लौट आते हैं पिता
बिना पूछे ही बाजार की कुछ मनमाफिक
गढ़ी हुई कहानियां सुनाते हैं पिता।
किसी पुराने दोस्त के मिलने
और
मिलकर बतियाने को बताते हैं नज़ीर
ताकि घर समझें और जीना सीख जाएं
जीवन की एक शानदार तरकीब।
हां ऐसे ही तो होते हैं उम्रदराज़ पिता।
खाली समय में
कभी-कभी
अपनी कुर्सी, चश्मे और पुरानी पुस्तकों से
भी बतियाते हैं पिता।
एक उम्र को जीकर पिता होना
और
उम्रदराज होकर भी
घर को कांधे पर टांगे रखना
हां उम्रदराज़ पिता ऐसे ही तो होते हैं।
उम्रदराज़ पिता की मनःस्थितियों को बयान करती एक सशक्त रचना, कोई पिता बनकर ही पिता के दिल की हालत जान सकता है
ReplyDeleteसच बात कहीं आने अनिता जी...। मन की बात।
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