तपिश के बाद
नदी की पीठ पर
फफोले हैं
और
खरोंच के निशान
हर रात
खरोंची जाती है
देह
की रेत
रोज हटाकर
खंगाला जाता है
गहरे तक.
हर रात
ऩोंची गई नदी
सुबह दोबारा शांत बहने लगती है
अपने जख्मों में दोबारा
रेत भरती है.
नदी की आत्मा
तक
गहरे निशान हैं
छूकर देखिएगा
नदी रिश्तों में नमक होती जा रही है.
एक दिन
खरोंची नदी
पीठ के बल सो जाएगी
हमेशा के लिए
तब तक हम
सीमेंट से जम चुके होंगे
अपने भीतर पैर लटकाए.
मार्मिक
ReplyDeleteआभार आपका अनीता जी।
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