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पुरवाई

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

प्रेम

 कोई प्रेयसी

ही थी, 

हां 

एकाकी

जीवन जीते हुए

कथा हो गई।

किताब के पन्नों में

महानता का दर्जा पाकर

लेटी है

शब्दों को सिराहने लगाए

सदियों से

प्रेम के इंतजार में।

प्रेयसी पर लिखे गए हैं

अनेक ग्रंथ 

कोई लिखा नहीं गया 

उसके प्रेम की अधूरेपन की बेबसी के बाद

गहरे समा जाने वाले 

मौन प्रेमालाप पर।

प्रेम का अंत 

मौन ही है

विरक्ति है

देह से कोसों दूर

किसी किताब में अब भी

वह

मौन से 

प्रेयसी कहलाती है।

सोचता हूं

प्रेम की हार

और 

प्रेम की जीत

आखिर

दोनों ही राह

भक्ति पर ही ले जा रही हैं।

आखिर में 

खोजा जाता है प्रेम से विरक्त 

कोई 

साझा सच

अपने-अपने अंदर। 

देह से कोसों दूर

किसी

खोह में चीखते हुए मौन के बीच। 




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