कोई प्रेयसी
ही थी,
हां
एकाकी
जीवन जीते हुए
कथा हो गई।
किताब के पन्नों में
महानता का दर्जा पाकर
लेटी है
शब्दों को सिराहने लगाए
सदियों से
प्रेम के इंतजार में।
प्रेयसी पर लिखे गए हैं
अनेक ग्रंथ ।
कोई लिखा नहीं गया
उसके प्रेम की अधूरेपन की बेबसी के बाद
गहरे समा जाने वाले
मौन प्रेमालाप पर।
प्रेम का अंत
मौन ही है
विरक्ति है
देह से कोसों दूर
किसी किताब में अब भी
वह
मौन से
प्रेयसी कहलाती है।
सोचता हूं
प्रेम की हार
और
प्रेम की जीत
आखिर
दोनों ही राह
भक्ति पर ही ले जा रही हैं।
आखिर में
खोजा जाता है प्रेम से विरक्त
कोई
साझा सच
अपने-अपने अंदर।
देह से कोसों दूर
किसी
खोह में चीखते हुए मौन के बीच।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 जुलाई 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका आदरणीय हरीश जी।
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