कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
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पुरवाई
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पीढ़ी जंगल महत्वाकांक्षा आदमी वैचारिकता स्याह जंगल सदी सुबह धरती लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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