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गुरुवार, 3 जुलाई 2025

अभिव्यक्ति

 प्रेम 

वहां नहीं होता

जहां दो शरीर होते हैं।

प्रेम वहां होता है

जब शरीर मन के साथ होते हैं।

प्रेम

का अंकुरण

मन की धरती पर होता है। 

शरीर 

केवल मन की अभिव्यक्ति का एक 

मूक पटल है।

शरीर और मन के बीच

कहीं 

कोई 

भाव जन्मता है और गुलाब की भांति

मन की धरा 

महकने लगती है

शरीर का रोम रोम पुलकित हो उठता है

प्रेम को करीब पाकर।

प्रेम 

मन का आवरण है

चेहरा 

उस आवरण का आईना।

यही कारण है

मन हमेशा मकहता है

और शरीर

एक दिन

एक उम्र के बाद

मुरझा जाता है।

सच प्रेम

मन से होता है। 

बुधवार, 2 जुलाई 2025

दरारों के बीच देखिएगा कहीं कोई पौधा

 कहीं किसी सूखती धरा के सीने पर

कहीं किसी दरार में

कोई बीज 

जीवन की जददोजहद के बीच

कुलबुलाहट में जी रहा होता है।

बारिश, हवा, धूप 

के बावजूद

दरारों में बसती जिंदगी

खुले आकाश में जीना चाहती है।

कोई पौधा 

जब

वृक्ष होकर देता है छांव

फल

जीवन

हवा

और बहुत कुछ।

तब उसे सार्थकता का होता है अहसास।

दरारों के बीच देखिएगा

कहीं कोई पौधा

यदि

नजर आ जाए 

तो 

बना दीजिएगा ठहरकर

दो पल

उसकी राह आसान।

उसके और खुले आसमान के बीच

के उस अंधेरे को

घुटन को

कम कर दीजिएगा

उस दरार को मिटाकर।


मंगलवार, 1 जुलाई 2025

प्रेम

 कोई प्रेयसी

ही थी, 

हां 

एकाकी

जीवन जीते हुए

कथा हो गई।

किताब के पन्नों में

महानता का दर्जा पाकर

लेटी है

शब्दों को सिराहने लगाए

सदियों से

प्रेम के इंतजार में।

प्रेयसी पर लिखे गए हैं

अनेक ग्रंथ 

कोई लिखा नहीं गया 

उसके प्रेम की अधूरेपन की बेबसी के बाद

गहरे समा जाने वाले 

मौन प्रेमालाप पर।

प्रेम का अंत 

मौन ही है

विरक्ति है

देह से कोसों दूर

किसी किताब में अब भी

वह

मौन से 

प्रेयसी कहलाती है।

सोचता हूं

प्रेम की हार

और 

प्रेम की जीत

आखिर

दोनों ही राह

भक्ति पर ही ले जा रही हैं।

आखिर में 

खोजा जाता है प्रेम से विरक्त 

कोई 

साझा सच

अपने-अपने अंदर। 

देह से कोसों दूर

किसी

खोह में चीखते हुए मौन के बीच। 




रविवार, 29 जून 2025

जल्द नहीं कटती दोपहर

 बोझिल सी सांझ

के बाद

कोई सुबह आती है

जो दोपहर की तपिश साथ लाती है

और 

उसमें घुल जाया करता है

पूरा जीवन।

उसके बाद 

थके शरीर पर 

होले होले शीतल वायु 

लगाती रहती है मरहम।

फिर 

कोई सांझ बोझिल नहीं होती। 

सुबह, दोपहर और सांझ

यही तो

जीवन है

और 

हरेक का अपना ओरा।

सुबह गहरे इंतजार के बाद होती है

कई स्याह रातों के कटने के बाद।

दोपहर जल्द नहीं कटती

थकाकर पूरी उम्र को चकनाचूर कर देती है।

और 

सांझ उस दौर का नाम है

जब आप थके शरीर को

कमजोर पैरों पर

अनिच्छा भरे माहौल में 

रोज कुछ कदम

चलाते हो, थकाते हो

और 

सो जाते हो...।

फांस

 शब्द और उसकी कोरों के बीच

भाव कहीं उलझे रह जाते हैं

अक्सर।

एक उम्र तक

एक सदी तक।

कोई नहीं सुलझाता उन्हें

कोई नहीं खोलना चाहता 

उन उलझी गांठों को। 

कुछ नेह की फांस होती हैं

वह अक्सर

चुभती रहती हैं

मन में

उम्र भर।

देखा है मैंने

ऐसी फांस कोई निकालना भी नहीं चाहता..।

कुछ रिश्ते जीवन भर

महकते हैं

अपने सुखद होने के अहसास के बीच।

हम उन रिश्तों के रेशों को बांधना नहीं चाहते

वे 

हवा में मुस्कुराते ही अच्छे हैं।

शनिवार, 28 जून 2025

काश कोई बूंद जी पाती एक सदी



बारिश की बूंदों पर 

लिखी हैं

अनेक उम्मीदें

पर्व

खुशियां

जीवन

सहजता

जीवन का दर्शन

और 

प्रेयसी का इंतजार। 

बूंदों को भी क्या हासिल

एक पल का जीवन

हजार ख्वाहिशों पर 

हर बार कुर्बान। 

काश कोई बूंद

जी पाती

एक सदी

ठहर पाती एक पूरी उम्र

देख पाती

क्या बदल जाता है उसके उस एक पल में।

प्रेम

 


प्रेम 

जो तुमसे कहा न जा सके

और

मुझसे लिखा न जा सके।

केवल

अभिव्यक्त हो

तुम्हारी आंखों में

मेरे

व्यवहार में।

केवल

महसूस हो 

तुम्हारे और मेरे भाव 

की डोर में।

तुम्हारे

और 

मेरे बीच

प्रेम ही तो है

जो 

कुछ नहीं चाहता 

केवल 

बीतते हुए 

कुछ समय में से

दो बातें

और 

दो पल।

ये प्रेम ही तो है

वाकई।

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...