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गुरुवार, 3 जुलाई 2025

अभिव्यक्ति

 प्रेम 

वहां नहीं होता

जहां दो शरीर होते हैं।

प्रेम वहां होता है

जब शरीर मन के साथ होते हैं।

प्रेम

का अंकुरण

मन की धरती पर होता है। 

शरीर 

केवल मन की अभिव्यक्ति का एक 

मूक पटल है।

शरीर और मन के बीच

कहीं 

कोई 

भाव जन्मता है और गुलाब की भांति

मन की धरा 

महकने लगती है

शरीर का रोम रोम पुलकित हो उठता है

प्रेम को करीब पाकर।

प्रेम 

मन का आवरण है

चेहरा 

उस आवरण का आईना।

यही कारण है

मन हमेशा मकहता है

और शरीर

एक दिन

एक उम्र के बाद

मुरझा जाता है।

सच प्रेम

मन से होता है। 

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 कहीं कोई खलल है कोई कुछ शोर  कहीं कोई दूर चौराहे पर फटे वस्त्रों में  चुप्पी में है।  अधनंग भागते समय  की पीठ पर  सवाल ही सवाल हैं। सोचता ह...