प्रेम
वहां नहीं होता
जहां दो शरीर होते हैं।
प्रेम वहां होता है
जब शरीर मन के साथ होते हैं।
प्रेम
का अंकुरण
मन की धरती पर होता है।
शरीर
केवल मन की अभिव्यक्ति का एक
मूक पटल है।
शरीर और मन के बीच
कहीं
कोई
भाव जन्मता है और गुलाब की भांति
मन की धरा
महकने लगती है
शरीर का रोम रोम पुलकित हो उठता है
प्रेम को करीब पाकर।
प्रेम
मन का आवरण है
चेहरा
उस आवरण का आईना।
यही कारण है
मन हमेशा मकहता है
और शरीर
एक दिन
एक उम्र के बाद
मुरझा जाता है।
सच प्रेम
मन से होता है।
मन भी वह नहीं जिसे हम जानते हैं, बल्कि गहरा मन जो अस्तित्त्व ने हमें सौंपा है
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